नई दिल्ली। यह बात तो आपने सुनी ही होगी कि अच्छी कमाई करनी है तो अच्छे से पढ़ो। घरों में आपने अक्सर यह बात सुनी होगी कि नहीं पढ़ोगे तो क्या भैंस चराओगे। आप सोच रहे होंगे भला भैंस चराकर भी कोई पैसे कमा सकता है, वह भी हजारों रुपये। आज हम आपको बता रहे हैं कि कैसे अनपढ़ लोग भैंस चराकर हजारों रुपये महीने कमा रहे हैं।
अनपढ़ कर रहे कमाई
हरियाणा और ग्रेटर नोएडा में बिहार और यूपी से आए कई अनपढ़ लोग यहां के किसानों के भैंस चराकर हजारों रुपये कमा रहे हैं। इसी का एक उदाहरण हैं बिहार के सहरसा जिले के रहने वाले झकस कुमार, जो भैंस चराकर अपनी अच्छी कमाई कर रहे हैं। नोएडा और ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस-वे के पास झट्टा गांव के किसानों ने अपनी भैंसों को चराने के लिए झकस कुमार को काम पर रखा है। अनपढ़ झकस कुमार के पास अभी 50 भैंसें हैं, उसे हर महीने इन्हें चराने के बदले 25 हजार रुपये मिलते हैं। झकस की तरह बिहार और यूपी के कई लोग इसी काम में लगे हुए हैं।
भैंस चराओ, पैसे कमाओ
झट्टा गांव के सोहनपाल पहलवान ने बताया कि जो लोग चरवाहों का काम कर रहे हैं, वे लोग हरियाण और चंडीगढ़ में फसलों की बुआई और कटाई के समय आते हैं। यहां के किसानों के पास अपने दूसरे कामों के चलते भैंसों को चराने का वक्त नहीं मिलता है। ऐसे में यहां के किसानों ने ही इन मजदूरों को यह आइडिया दिया कि वे उनके भैंसों को चरा दिया करें और बदले में प्रति भैंस 500 से 700 रुपये महीना ले लिया करें।
हिट हुआ आइडिया
किसानों का यह आइडिया हिट हो गया और अब इलाके के बदौली, गुलावली, कामनगर आदि गांवों में तो भैंसों के लिए चरवाहे नियुक्त किए जा रहे हैं। किसानों का कहना है कि एक भैंस रोजाना 8 से 10 किलो दूध देती है। ऐसे में महीने के 15 हजार रुपये की कमाई हो जाती है। ऐसे में 500 रुपये लेकर कोई अगर भैंसों को चरा देता है तो इससे फायदा ही है। हमारा समय बच जाता है।
गांव में ही रहते हैं चरवाहे
ये चरवाहे गांव में ही किसी के मकान में किराए पर परिवार सहित रहते हैं। सुबह आठ बजे से ये घर-घर जाकर भैंसों को खोल लेते हैं और उन्हें गांव के बाहर खेतों की ओर ले जाते हैं। भैंसों को चराने के बाद हिंडन या यमुना नदी में नहला देते हैं। दिनभर चराने के बाद वे शाम पांच बजे भैंसों को वापस गांव ले आते हैं। एक चरवाहा के मुताबिक उनके गांव के बहुत से लोग अब यही काम कर रहे हैं। इसमें पैसे भी ठीक मिल जाते हैं। बड़ी बात यह है कि उन्हें अपने रिहाइश के करीब ही रोजगार मिल जाता है।