आपने भगवान नृसिंह के बारे में तो सुना ही होगा। असल में नृसिंह का अर्थ होता है, आधा शेर और आधा मनुष्य। वेदो और शास्त्रों में भगवान नृसिंह से जुड़ी एक कथा कै वर्णन मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा कश्यप के पुत्र हिरण्यकशिपु द्वारा अपने ही पुत्र और भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद को मारने के प्रयास के दौरान खंभा फाड़कर निकले थे नृसिंह भगवान। इसके बाद उन्होंने हिरण्यकशिपु को अपनी जांघ पर लिटाया और अपने नाखुनों से उसका पेट फाड़कर उसका वध कर दिया था। नृसिंह, भगवान विष्णु के ही अवतार थे। अब भले ही ये सब जानकारियां हमें पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राप्त हुई हैं, लेकिन देश-दुनिया में ऐसे कई प्रमाण हैं जो भगवान नृसिंह के अस्तित्व को प्रदर्शित करते हैं। तो चलिए हम बताते हैं भगवान विष्णु के इस अवतार से जुड़े कुछ बड़े तथ्यों के बारे में--
नृसिंह भगवान की 32 हजार साल पुरानी मूर्ति जर्मनी में
यूं तो हडप्पा-मोहन जोदाड़ो से लेकर कई सभ्याताओं को देश-दुनिया के वैज्ञानिकों और इतिहासकारों ने खोजा है लेकिन 1939 में भगवान नृसिंह की एक मूर्ति मिली जर्मनी की एक गुफा में। वो भी ऐसे स्थान पर जहां, सिर्फ कई जीवों के अवशेष और लोगों के कंकाल मिले।
इस मूर्ति को लेकर वैज्ञानिकों का दावा है कि ये करीब 32 हजार साल पुरानी मूर्ति है। 1939 के दौरान दूसरे विश्वयुद्ध के चलते ये मूर्ति सुर्खियां नहीं बंटोर सकी थी। जानकारी के अनुसार 1998 में इस मूर्ति के टुकड़ों को एक-एक करके जोड़ा गया तो ये भगवान नृसिंह के रूप में सामने आई। अब से पहले हिन्दू धर्म को 12 हजार साल पुराना माना गया है लेकिन इस मूर्ति ने इतिहासकारों और वैज्ञानिकों को ये सोचने पर मजबूत कर दिया है कि आखिर हिन्दू धर्म कितना पुराना है। सवाल ये भी उठते हैं कि भगवान नृसिंह की ऐसी मूर्ति एशिया में न मिलकर यूरोप में मिली।
यूपी के ललितपुर में नृसिंह की विशाल प्रतिमा
देश-दुनिया में ऐसी कई प्रतिमाएं हैं जो अपने आम में कई रहस्य छिपाए हुए हैं। ऐसी ही एक प्रतिमा मिलती है उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के अंतर्गत आने वाले दुधई गांव में। यहां भगवान नृसिंह की एक 35 फीट ऊंची प्रतिमा है। इतना ही नहीं इस प्रतिमा को चट्टान काटकर बनाया गया है।
प्रतिमा का मुख शेर और शरीर मनुष्य के रूप में दर्शाया गया है। इतना ही नहीं इस प्रतिमा में भगवान नृसिंह हिरण्यकशिपु का वध करते हुए नजर आते हैं। हालांकि इस प्रतिमा को लेकर रहस्य बरकरार है कि आखिर इस प्रतिमा को कब और किसने बनाया। बता दें कि इस प्रतिमा के आसपास गुप्ता कालीन कई मंदिर और मूर्तियां भी हैं। गुप्त काल में भगवान विष्णु की उपासना होती थी।
बात भगवान नृसिंह की हो और उत्तराखंड का जिक्र न आए, ऐसा हो नहीं सकता। यूं तो भगवान नृसिंह उत्तराखंड में कई लोगों के कुलदेवता भी हैं, ऐसे में उनके कई मंदिर आपको उत्तराखंड के अलग-अलग जिलों में मिल जाएंगे। इस सब के बीच सुर्खियों में है भगवान नृसिंह का एक मंदिर। उत्तराखंड के जोशीमठ में भगवान नृसिंह का यह मंदिर अपनी एक पौराणिक मान्यता के चलते सुर्खियों में रहता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार, आठवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य ने श्रृष्टि की रचना और देव उत्पत्ति के बारे में लोगों को बताया। उस दौरान उन्होंने इस मंदिर में नृसिंह भगवान की एक मूर्ति की यहां स्थापना की।
केदारखंड के सनत कुमार संहिता के अनुसार, जब भगवान नृसिंह की मूर्ति से उनका हाथ टूटकर गिर जाएगा, उस दिन विष्णुप्रयाग के समीप पटमिला नामक स्थान पर जय व विजय नाम के पहाड़ आपस में मिल जाएंगे। इसके बाद बदरीनाथ के दर्शन नहीं हो पाएंगे। अब इस मूर्ति में कई आश्चर्य चकित करने वाले बदलाव देखने में आ रहे हैं। इस प्रतिमा की दाहिनी भुजा पतली है। जो धीरे-धीरे और अधिक पतली होती जा रही है।