कई बार आपके द्वारा अपने व्यवसाय या नौकरी में की गई कड़ी मेहनत भी आपको अनुकूल फल नहीं देती है। इतना ही नहीं आपके द्वारा किए गए प्रयास विफल हो जाते हैं। असल में शास्त्रों के मतानुसार, आपके कर्म के साथ आपका भाग्य भी जुड़ा हुआ है। कर्म आपकी मेहनत हुई जबकि भाग्य आपके नवग्रहों की चाल। आपको बताते हैं कि ये नवग्रह क्या हैं और आपकी उन्नति और आपके विकास में ये किस तरह बाधाकारक होते हैं। तो आइये अब आपको बताते हैं इसके महत्व और स्वरूप के बारे में।
सूर्य
बात करते हैं नवग्रहों में सबसे पहले सूर्य की। जीवन में सूर्य ग्रह का सबसे बड़ा महत्व है। सूर्य मान-सम्मान और प्रतिष्ठा कारक ग्रह है। शासनवृत्ति, आत्मीय ज्ञान एवं साक्षात्कार राजस्तरीय, पिता एवं आरोग्यता को दर्शाता है। अगर किसी जातक की कुंडली में सुर्य मेष राशि का हो तो वह प्रतिष्ठा एवं इत्यादि जो भी खूबियां सूर्य के अंदर हैं उनका सुख प्राप्त करता है। अगर सूर्य जातक की कुंडली में नीच का हो या शत्रुभाव में हो तो जातक को इसके चलते हड्डी, पेट, नेत्ररोग, सिर के रोग, दुष्टता, क्रोध जैसे अवगुण प्रदान करता है।
चंद्रमा
मनुष्य के जीवन के चंद्रमा की अहम भूमिका है। ये ग्रह जातक के मन-बुद्धि, पुण्य, गौरी की भक्ति, उल्लाहस इत्यादि का कारक है। अगर जातक की कुंडली में चंद्रमा उच्च राशि यानी वृष राशि में स्थित है तो वह अनेक प्रकार के सुखों से परिपूर्ण करता है। वहीं अगर चंद्रमा जातक की कुंडली में नीच या शत्रुभाव में है तो रोग, कफ, आलस्य, मिरगी रोग, शीत संबंधी विकार एवं मानहानि जैसी दिक्कतों से जूझने को मजबूर कर सकता है।
मंगल
मंगल ग्रह किसी भी जातक को भूमि, भवन, पराक्रम, उदारता, शत्रु शासक, विदेश गमन एवं बाग बगीचों का स्वामित्व समेत गंभीरता जैसे गुणों से सुशोभित करता है। जातक की कुंडली में अगर मंगल उच्च राशि यानि मकर में है तो जातक को इन सभी चीजों का लाभ प्राप्त होता है। अगर, मंगल जातक की राशि में सही भाव में न बैठा हो तो उसमें झगड़ालू, मूत्ररोग, दूसरों में दोष निकालने की प्रवृति, घात और चित की चंचलता जैसी प्रवृति आ जाती है।
बुध
जातक की कुंडली में बुध उच्च राशि यानि कन्या में होने पर वह जातक पढ़ाई, वाणी, ज्ञान, गणित, वस्त्र, लेखनकार्य, संचार यंत्र, बौद्धिक यंत्र, ज्योतिष, व्याकरण, तीर्थ यात्रा एवं व्याख्यान शक्ति का गुणी होता है। वहीं अगर यह ग्रह नीच या शत्रु या दुष्ट ग्रहों के साथ बैठा हो तो उन ग्रहों जैसा ही फल प्रदान करता है। विशेषतौर पर बुध, नपुंशकता एवं गले जैसे विकार प्रदान करता है।
गुरू
जातक की कुंडली में अगर गुरू उच्च राशि यानि कर्क में या स्वग्रही हो तो वह व्यक्ति गुरू, शिक्षा, धन,ज्ञान, तर्क, तीर्थ यात्रा, धर्म कार्य, धन की शक्ति, कानूनी कार्य, दूसरे के विचारों को पढ़ना, सभा के मध्य प्रमुख शिक्षण जैसे गुण प्रदान करता है। वहीं अगर नीच या शुत्र भाव में हो तो जातक को पेट की बीमारियों, संतान सुख में बाधा, पढ़ाई में गिरावट जैसे कष्टों का सामना करना पड़ता है।
शुक्र
अगर यह ग्रह किसी जातक की कुंडली में उच्च राशि यानि मीन में हो तो जातक को विवाह, आय, पत्नी सुख, काम सुख, वाहन, सौंदर्य, अभिनय, वशिकरण आदि क्षेत्र में लाभ प्रदान कराता है। जबकि नीच या शत्रु भाव में होने से विवाह में विलंब, संतान सुख में बाधा, पर-स्त्री गमन, जैसे अवगुण देता है।
शनि
किसी भी जातक की कुंडली में अगर शनि उच्च राशि तुला में है तो वह जातक परिश्रमी, तेल-लकड़ी का व्यावसाय, जनतंत्र, जनता शक्ति, संपन्नता, सरकारी नौकरी जैसे सुख देता है। जबकि शनि के नीच या शत्रुभाव में बैठे होने से आलस्य, नपुंसकता, मरण, आधार्मिक कृत्य, मिथ्या वासन, मजदूर वर्ग, मंदिरा पान एवं पराधीनता जैसे योग बनाता है।
राहु
यह ग्रह अगर जातक की कुंडली में उच्च राशि का यानि मिथुन में है तो व्यवसाय में वृद्धि, नौकरी पेशा लोगों को समृद्धि, विदेश गमन, दुर्गा उपासना, एवं वैराग्यता को दर्शाता है। वहीं नीच या शत्रुभाव में होने पर यह जातक को अधार्मिक कृत्य, बुरे लोगों की संगति, भूत बाधा एवं भ्रष्टता जैसे अवगुणों और परेशानियों से रूबरू करवाता है।
केतु
यह ग्रह जातक की कुंडली में अगर उच्च राशि यानि धनु में बैठा है तो ऐसा जातक चिकित्सा, हर प्रकार का ऐश्वर्य, संपदा, तीर्थागमन, गुप्त विद्या, आत्मज्ञान, गणेश भक्ति एवं शिव भक्ति से परिपूर्ण करता है। वहीं अगर केतु जातक की कुंडली में नीच या शत्रुभाव में बैठा है तो रोग पीड़ा, अज्ञानता, शत्रु से पीड़ित, बंधन, कारागार, चर्म रोग एवं गुप्त चिंताओं से परेशान करता है।