--पंडित विवेक खंकरियाल
सर्व मंगल मांगल्ये सिवे सर्वाथ साधिके ।
शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणी नम्स्तुते । ।
नवरात्रों के चतुर्थ दिवस मां के जिस स्वरूप का पूजन किया जाता है वह कुष्मांडा के रूप में है। मान्यता है कि जब सृष्टि का अस्त्तिव नहीं था तब कुष्मांडा देवी ने ब्रह्माडं की रचना की। अपनी मंद मुस्कान से पूरे बह्माडं की उत्पत्ति के कारण इन्हें कुष्मांडा नाम से जाना जाता है। यह पृथ्वी की आदि शक्ति हैं। देवी कुष्मांडा के निवास की क्षमता सिर्फ सूर्यमंडल में है। माता का तेज और प्रकाश दसों दिशाओं को प्रकाशित करता है। सभी वस्तुओं और प्रणियों में मौजूद तेज मां कुष्मांडा की ही छाया है। इसलिए मां को अष्ठभुजा के नाम से भी जाना जाता है। इनके आठ में सात हाथों में क्रमशः धनुष, बांण, कमल पुष्प, अमृत कलश, चक्र तथा गदा है। जबकि आठवें हाथ में सभी सिद्धिया और निधियों को देने वाली जप माला है। मां सिंह पर सवार रहती हैं।
---पूजन का विधान--
1- मां का पूजन करने से पहले अपने देवस्थान को साफ कर लें। इसके बाद गंगाजल का छिड़काव कर स्थान को पवित्र करें और अपने हिसाब से सजा लें। 2- इसके बाद सर्वप्रथम गणेश पंचांग चौकी तैयार करें, जिसमें गौरी-गणेश, ओमकार (ब्रहमा-विष्णु-महेश) स्वास्तिक, सप्त घृतमात्रिका, योगनी, षोडस मात्रिका, वास्तु पुरुष, नवग्रह देवताओं समेत वरुण देवता को तैयार करें।3-तदोपरांत सर्वतो भद्र मंडल (चावल से बनाया गया आसन, जिसपर आह्वान करके हमारे सभी देवी-देवताओं को विराजमान किया जाता है। ) को तैयार करें।4-इसके बाद एक सकोरे में मिट्टी भरकर उसमें जौ को बोएं और देव स्थान पर रख दें।5-इसके बाद माता के मंदिर को चुनरी और फूल मालाओं से सजाएं। माता की मूर्ति पर रोली का टिका लगाएं। चावल लगाएं। साथ ही देवस्थान पर अपनी श्रद्धानुसार फल-फूल-मिष्ठान तांबुल दक्षिणा इत्यादि समर्पित करें। 6-इसके बाद अपने अनुसार या ब्राह्मणों के द्वारा पाठ करें/कराएं।