नई दिल्ली। मान्यता के अनुसार पितृ पक्ष में पितृ पृथ्वी पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण और पिंड दान प्राप्त कर उन्हें समृद्धि का आशीवार्द देते हैं। इन दिनों में पितृ पक्षों की पूजा अर्चना करने से आपको अनेक प्रकार के पारिवारिक और सांसरिक लाभ होते हैं। जैसे घर में समृद्धि का आगमन, गृह कलह से छुटकारा, धन में धन वृद्धि इत्यादि। मगर कहा जाता है कि अगर पितृ पक्ष की पूजा सही ढंग से नहीं की जाएं तो इससे कई परिवार को दोष भी लग सकता है। ऐसे में पितृपक्ष की पूजा करने के बारें में आइए जानते हैं विस्तार से....
कब शुरू होता है पितृ पक्ष
पितृ पक्ष भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या पर खत्म होता है।
क्यों मनाया जाता है
शास्त्रों में मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋृण ( पितृ ऋृण, देव ऋृण, ऋृषि ऋृण) प्रमुख माने गए हैं। इनमें पितृ ऋृण सर्वोपरि है।
कौन करता है श्राद्ध
श्राद्ध मुख्य रूप से पुत्र, पोता, भतीजा या भांजा करते हैं। जिनके घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं है, उनमें महिलाएं श्राद्ध कर सकती हैं।
किसका किया जाता है श्राद्ध
श्राद्ध तीन पीढियों तक का किया जाता है। देवतुल्य स्थिति में तीन पीढ़ियों के पूर्वज गिने जाते हैं। पिता को उनके वासु, दादा को रूद्र और परदादा को आदित्य सामान दर्जा दिया गया है।
कैसे किया जाता है श्राद्ध
जल में दूध, काले तिल, लाल-सफेद फूल और कुश डालें। फिर दक्षिण दिशा में मुंह करके 'ओम् पितृदेवताभ्यों नम:' मंत्र का उच्चारण करें और सूर्य देव को यह जल चढ़ाएं। यम का प्रतीक माने जाने वाले कौए, कुत्ते और गाय को भोजन कराएं।
वहीं माना जाता है जल जन्म से मोक्ष तक साथ देता है, जबकि काले तिल देवान्न कहे जाते हैं, जो पितृों की आत्मा को तृप्ति देते हैं। कुश मोक्ष का प्रतीक है, क्योंकि इसकी शिरा पर ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और अंत में भगवान शंकर का वास है।