नई दिल्ली । आने वाले समय में संभव है कि आपाराधिक मामलों के आरोपी उम्मीवारों को भी चुनावी प्रक्रिया से बेदखल कर दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट में इससे जुड़ी एक याचिका दाखिल की गई थी जिसपर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गई है। इतना ही नहीं गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए पांच जलों की एक स्पेशल बेंच भी बना दी है। अब संभव है कि सजा पाए लोगों पर चुनावों से दूर रहने की बंदिश के बाद आपराधिक मामलों में लिप्त नेताओं को भी लोकतंत्र के इस सबसे बड़े रणक्षेत्र से दूर रखा जा सके।
चुनाव आयोग ने भी कसी कमर
असल में पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की रणभेरी बजाने के साथ ही चुनाव आयोग ने भी साफ-सुथरे चुनाव कराने के लिए कमर कस ली है। भारतीय चुनाव आयोग ने बुधवार को साफ कर दिया था कि इस बार उम्मीदवारों के लिए राह आसान नहीं होगी। अब गंभीर आपराधिक मामलों में आरोपियों पर नकेल कसने की तैयारी है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट फाइल की गई है और एपेक्स कोर्ट भी इसकी सुनवाई के लिए तैयार है। अब सुप्रीम कोर्ट ने एक स्पेशल बेंच भी बना दी है। माना जा रहा है कि 5 राज्यों में विधानसभा चुनावों को देखते हुए कोर्ट कोई अहम फैसला दे सकती है
कया हो सकता है असर
अगर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गंभीर आपराधिक मामलों वाले आरोपियों के चुनाव लडऩे पर कोई कड़ा फैसला आता है, तो यह भारतीय राजनीति को साफ-सुथरा करने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा। दो साल से ज्यादा की सजा पाए व्यक्ति को पहले ही चुनाव लडऩे से बेदखल किया जा चुका है, लेकिन गंभीर आरोपों में घिरे उम्मीदवार पर ऐसी कोई बंदिश नहीं है। गौरतलब है कि यूपी और उत्तराखंड में होने वाले विस चुनावों में लगभग सभी पार्टियों ने दागी छवि वाले नेताओं को टिकट दिये हैं।
धर्म, जाति, संप्रदाय के नाम पर लगी थी रोक
खास बात यह है कि दो दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने धर्म, जाति और संप्रदाय के नाम पर वोट मांगने की प्रवृत्ति पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुत्व के मुद्दे पर दायर कई याचिका पर सोमवार को सुनवाई करते हुए कहा था कि धर्म, जाति और संप्रदाय के नाम पर नेता वोट नहीं मांग सकते। कोर्ट ने यह भी कहा था कि इंसान और भगवान के बीच रिश्ता अपनी निजी पसंद का मामला है। सरकार को इससे खुद को अलग रखना चाहिए। पूर्व चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर समेत 4 जजों ने धर्म, भाषा, संप्रदाय और जाति के नाम पर वोट मांगने को करप्ट प्रैक्टिस माना था. जस्टिस टीएस ठाकुर, जस्टिस मदन बी लोकुर, एल नागेश्वर राव और एसए बोबड़े इस फैसले पर राजी थे, जबकि बेंच के 3 जज जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस आदर्श गोयल और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ इसके विरोध में थे।