राजनीति नाम ही है राज करने की नीति का।फिर चाहे पार्टी कोई हो और विचारधारा कोई। चुनावी मौसम में इन्हें बदलते देर नहीं लगती। 16 साल पहले एक अलग राज्य का दर्जा पाए उत्तराखंड की राजनीति में इस बार दिल बदलने और दल बदलने का सिलसिला इतिहास रचने की ओर बढ़ चला है। यूं तो हर चुनाव में ही कोई न कोई इधर से उधर जाता है, लेकिन इस बार जिस तरह से कांग्रेस और भाजपा के नेताओं ने दिल बदले हैं, वह चौंकाने वाला है। इससे भी अधिक चौंकाने वाला है दोनों ही पार्टियों का दल बदलुओं से अथाह प्रेम। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही इस बार विधानसभा चुनाव में दल बदलने वालों को दिल से लगाया है। इतना ही नहीं उन्हें थमा दिया है चुनावी टिकट। अब गेंद जनता के पाले में है। दिल और दल बदलने वालों की तकदीर का फैसला वोटर्स के हाथों में है।
2017 के चुनाव में जीत हासिल करके सत्ता में वापसी की बेताबी इस कदर है कि भाजपा ने एक दर्जन से ज्यादा ऐसे नेताओं को टिकट थमा दिया है, जो दूसरी पार्टी से आए हैं। निशंक, खंडूरी जैसे चेहरे होने के बावजूद सीएम चेहरे का खुलासा करने से बच रही भाजपा कांग्रेस के बागियों पर दांव खेलने से नहीं चूक रही।यही कारण है कि उसने कांग्रेस से कमल थामने वाले आधा दर्जन से अधिक नेताओं या उनके प्रतिनिधियों (बेटे, पति आदि) को टिकट थमाने से गुरेज नहीं किया है।अगर भाजपा लिस्ट का मुआयना करें तो साफ है कि राज्य में कांग्रेस से बगावत करने वाले अधिकांश नेताओं को इसका इनाम विधानसभा चुनाव टिकट के तौर पर मिला है। इरादा साफ है कि तख्तपलट के जरिए भाजपा की राज्य में ताजपोशी की कोशिश में साथ देने वालों को अब चुनाव जिताकर भाजपा सत्ता पाना चाहती है। अब चाहे वह कोटद्वार से टिकट पाए डॉ. हरक सिंह रावत हों या चौबट्टाखाल से विधायक अमृता रावत की जगह चुनाव लडऩे का न्योता पाए सतपाल महाराज। कहानी एक सी है।
भाजपा में टिकट पाए पुराने कांग्रेसियों में केदारनाथ से शैला रानी रावत, यमुनोत्री से केदार सिंह रावत, शडकी से प्रदीप बत्रा, रायपुर से उमेश शर्मा , भगवानपुर से सुबोध राकेश, नरेंद्रनगर से सुबोध उनियाल, खानपुर से कुंवर प्रणव चैंपियन, जसपुर से डॉ. शैलेंद्र मोहन सिंघल, सितारगंज से विजय बहुगुणा के बेटे सौरभ बहुगुणा, नैनीताल से संजीव आर्य, बाजपुर से यशपाल आर्या और सोमेश्वर से रेखा आर्य को टिकट थमाकर भाजपा ने पहाड़ और मैदान में बराबरी से मोर्चा थामने की जुगत भिड़ाई है. अब बात सत्ताधारी कांग्रेस की। खुद पहाड़ छोडकर मैदान की तरफ चल पड़े सीएम हरीश रावत कुर्सी फिर से पाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। भाजपा से आए नेताओं पर उनका भी नेह जमकर बरस रहा है।
भाजपा का साथ छोडक़र कांग्रेस का हाथ थामने वाले 5 पूर्व विधायकों को हरीश रावत ने टिकट थमा दिया है। कहा तो जा रहा है कि टिकट हाईकमान के आदेश पर जारी किए गए हैं, लेकिन टिकट सूची देखकर साफ हो जाता है कि इस बार टिकट वितरण में हरीश रावत का पलड़ा भारी रहा है। कांग्रेस ने 6 दलबदलूओं को टिकट थमाए हैं।
कांग्रेस ने पुरोला से राजकुमार को हाथ का साथ दिया है, तो रूडकी से सुरेश जैन पर भरोसा जताया है। भीमसाल से भाजपा के पुराने योद्धा दानसिंह भंडारी इस बार कांग्रेस के निशान पर ताल ठोकेंगे, तो यमकेश्वर से शैलेंद्र रावत हाथ पर तकदीर आजमाएंगे। कांग्रेस से प्यार पाए दलबदलुओं में पुरोला से राजकुमार और बाजपुर से सुनीता बाजवा भी शामिल हैं। वहीं पांच पूर्व विधायकों को टिकट देकर कांग्रेस ने भी तगड़ा दांव खेलने की कोशिश की है। बहरहाल अब यह दांव कितना फायदेमंद होगा और कितना नुकसानदेह, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।