पिछले कुछ समय की तुलना में आज लोगों की एकाग्रता में काफी कमी आई है। ऐसे में एकाग्रता की कमी से संबंधित 'हाइपरएक्टिविटी डिजॉर्डर' ( एडीएचडी ) के असर को कम करने में नींद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मडरेक चिल्ड्रेंस रिसर्च इंस्टीट्यूट ( एमसीआरआई) ने एक शोध में पाया है कि एडीएचडी के लक्षण 70 फीसदी ऐसे लोगों में पाए गए, जिन्हें नींद आने में काफी दिक्कत आती है। शोधकर्ता मेलिस्सा मुलरेनी के अनुसार, सोने के समय की आदतों में सुधार से एडीएचडी पीड़ित लोगों में खास अंतर आ सकता है।
शोध में पाया गया है कि एडीएचडी से पीड़ित लोग ऐसे होते हैं जिनकी दिनचर्या एक-सी होती है। वे सोते समय कम परेशान होते है और आसानी से सो जाते हैं। जिन लोगों में अच्छी आदतें होती है वह बिना बहस किए सो जाते हैं और लंबी व अच्छी नींद लेते हैं। इससे वह दिन भर काफी चौंकन्ने रहते है। वहीं मेलिस्सा मुलरेनी का कहना है कि जब तक आप अच्छी नींद नहीं लेते, आप अपने काम पर अच्छे से ध्यान नहीं दे सकते। मुलरेनी ने बताया कि हमारी बॉडी क्लॉक हमें सोने के संकेत देती है, वह दिन के रोशनी से, तापमान से और भोजन के समय जैसे बाहरी संकेतों से काफी प्रभावित भी होती है।
इसके अलावा उन्होंने कहा कि अगर आपका आपकी दिनचर्या एक जैसी ही है- मसलन आप सुबह जल्दी उठते हैं, खेलते हैं, आफिस जाते हैं और शाम को थोड़ी देर आराम करने के बाद समय से सो जाते हैं, तो आपका शरीर इस रूटीन का आदी हो जाता है। आपके रूटीन के अनुसार ही आपको सोने की आवश्यकता महसूस होने लगती है।