नई दिल्ली । बच्चों के एग्जाम खत्म हो चुके हैं, ऐसे में अब बच्चे और उनके अभिभावक खुद को काफी सहज महसूस कर रहे हैं। आने वाले कुछ महीने बच्चों और उनके अभिभावकों खासकर मां के लिए थोड़े सुकून भरे होंगे, जिसमें जहां बच्चे टीवी-कंप्यूटर और वीडियो गेम्स का मजा लेंगे , वहीं बच्चों की मां भी थोड़ा रिलेक्स होने के लिए टीवी पर अपने पसंदीदा कार्यक्रम को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना सकते हैं। लेकिन इन सभी को इस दौरान अपनी सेहत को लेकर भी सचेत होने की जरूरत है। अमूमन देखा गया है कि टीवी देखने के दौरान बच्चे और बड़े दोनों ही सेहत के लिहाज से पौष्टिक नहीं माने जाने वाले स्नैक्स खाते हैं, जिससे चलते किशोरों और अन्य लोगों में हृदय रोग और डायबिटीज का खतरा बढ़ सकता है। हाल में सामने आए एक नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इसके प्रति लोगों को आगाह किया है। शोधकर्ताओं के अनुसार, अध्ययन में ऐसे किशोरों में मेटाबोलिक सिंड्रोम का खतरा पाया गया।
क्या है मेटाबोलिक सिंड्रोम
असल में यह ब्लड प्रेशर बढ़ने, हाई ब्लड शुगर, कमर के आसपास चर्बी जमा होने और असामान्य कोलेस्ट्रॉल के खतरे का कारक होता है। पिछले दिनों 12 से 17 साल के बच्चों को लेकर एक अध्ययन किया गया, जिसमें आधार पर यह निष्कर्ष निकला है। ब्राजील की यूनिवर्सिटी फेडरल डो रियो ग्रांड डो सुल के शोधकर्ता बीटिज चान ने कहा, ‘मौजूदा दौर में टीवी या कंप्यूटर स्क्रीन देखते हुए समय गुजारने को कम करना चाहिए। अगर ऐसा संभव नहीं है तो इस दौरान कोशिश करें कि आप स्नैक खाने पीने से परहेज करें। ऐसा करके लोग मेटाबोलिक सिंड्रोम से बच सकते हैं ।
समझें इस सिंड्रोम को
मेटाबॉलिक सिंड्रोम कोई बीमारी नहीं बल्कि जोखिम कारकों का एक समूह है। मसलन हाई ब्लडप्रेशर , उच्च रक्त शर्करा, कोलेस्ट्रॉल की मात्रा और मोटापा, आदि मिलकर मेटाबॉलिक सिंड्रोम बनते हैं। जानकारों का कहना है कि अगर आपके रक्त में बॅड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 150 मिग्रा/डेलि है, अथवा आप कोलेस्ट्रॉल को कम करने की दवा ले रहे हैं, तो आपको मेटाबॉलिक सिंड्रोम होने का खतरा काफी अधिक हो जाता है। इसी क्रम में अगर पुरुषों के खून में गुड कोलेस्ट्रॉल का स्तर 40 मिग्रा/डेलि और महिलाओं में यह स्तर 50 मिग्रा/डेलि है, तो उन्हें मेटाबॉलिक सिंड्रोम होने का खतरा काफी बढ़ जाता है।
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन और नेशनल हार्ट, लंग और ब्लड इंस्टीट्यूट के मुताबिक, मेटाबॉलिक सिंड्रोम को बढ़ाने के पांच जोखिम कारक हो सकते हैं।
- मोटापा इसके लिए सबसे बड़ा कारक हो सकता है। मेटाबॉलिक सिंड्रोम में पुरुषों की कमर का माप यदि 40 इंच से अधिक हो और महिलाओं की कमर का माप यदि 35 इंच से ज्यादा हो तो उन्हें मेटाबॉलिक सिंड्रोम होने का खतरा अधिक होता है।
- ऐसे लोग जिनमें इंसुलिन प्रतिरोधकता पैदा हो जाती है, तो इंसुलिन सही प्रकार काम नहीं कर पाता है, तो हमारा शरीर ग्लूकोज के बढ़ते स्तर का सामना करने के लिए इसका इंसुलिन का अधिक से अधिक निर्माण करने लगता है। अंत में यही स्थिति डायबिटीज का कारण बनती है। पेट पर जमा अतिरिक्त चर्बी और इनसुलिन प्रतिरोधकता के बीच सीधा संबंध होता है।
-मोटापा खासकर पेट के आसपास जमा अतिरिक्त चर्बी भी मेटाबॉलिक सिंड्रोम का एक संभावित कारण हो सकती है। जानकार कहते हैं कि मोटापा मेटाबॉलिक सिंड्रोम के फैलने के पीछे सबसे अहम कारण है।
- मेटाबॉलिक सिंड्रोम में हॉर्मोन्स की भी एक भूमिका हो सकती है। उदाहरण के लिए, पॉलिसाइस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस)- ऐसी परिस्थिति है, जो प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती है- यह भी हॉर्मोन असंतुलन और मेटाबॉलिक सिंड्रोम को प्रभावित करती है।
- मेटाबॉलिक सिंड्रोम होने का एक बड़ा कारण हाई बीपी को माना जाता है। सामान्य व्यक्ति का रक्तचाप 120/80 माना जाता है। बीपी के अधिक होने से मेटाबॉलिक सिंड्रोम की आशंका बढ़ जाती है। बीपी को काबू करने की दवा लेने वालों को खास सावधानी बरतने की जरूरत होती है।
- यदि खाना खाने के करीब 9 घंटे बाद भी रक्त में शर्करा की मात्रा 100 से अधिक है, तो यह वक्त आपके लिए सचेत होने वाला है। यह इस बात की ओर इशारा करता है कि आपको मेटाबॉलिक सिंड्रोम होने का खतरा है। यदि आपको इनमें से कम से कम तीन लक्षण दिखाई दें, तो समझ जाइए कि आप मेटाबॉलिक सिंड्रोम की शिकार हो सकते हैं।