न्यूयॉर्क। बीमारियों के इलाज को ढूढ़ने में लगे विशेषज्ञ अब एक ही दवा से अनेक बीमारियों के इलाज करने की कोशिशों में लगे हुए हैं। मैसाच्यूसेट्स जनरल हॉस्पिटल के विशेषज्ञों की टीम टीबी के टीके से टाइप-1 की शुगर का इलाज तलाशने में जुटी थी। विशेषज्ञों का दावा है कि टीवी को दोबारा देने से टाइप-1 की डायबिटीज का प्रकिया पलट जाती है। इसलिए विशेषज्ञ मान रहे है कि यह दवा इस गंभीर बीमारी का इलाज हो सकती है। टाइप-1 डायबिटीज ऑटोइम्यून बीमारी है, जो शरीर को इंसुलिन का उत्पादन करने से रोकती है। इंसुलिन वह हार्मोन है, जो रक्त में मौजूद ग्लूकोज को तोड़ने में शरीर की मदद जिससे हमें ऊर्जा मिलती है। इसे अक्सर शरीर की कोशिकाओं तक पहुंचने की चाबी कहा जाता है। एक बार इस दरवाजे के खुलने पर ग्लूकोज अपना काम करना शुरू कर सकता है और शरीर की कोशिकाएं इसका इस्तेमाल ऊर्जा संबधित जरूरतों के लिए कर सकती हैं। इंसुलिन के बिना शरीर ऊर्जा की कमी पूरी करने के लिए ग्लूकोज का इस्तेमाल कर सकता है।
जब यह हमारे शरीरका रोग प्रतिरोधक तंत्र इंसुलिन का उत्पादन करने वाली कोशिकाओं को संक्रमण समझकर खत्म कर देता है, तो टाइप-1 डायबिटीज की बीमारी हो जाती है।
शोधकर्ता डॉ. डेनीस फॉस्मैन का मानना है कि टीबी का टीका प्रतिरोधक तंत्र को पुन: स्थापित करता है, जिससे टाइप-1 की डायबिटीज होने की वजह समाप्त हो जाती है। अभी यह टीका स्कूल जाने वाले बच्चों को दिया जा रहा है।
टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज में अंतर
सभी तरह की डायबिटीज में ब्लड ग्लूकोज का सतर सामान्य से अधिक होता है। दोनें में अंतर इंसुलिन की कमी से होता है, जिसे एक तरह की चाबी करार दिया जाता है। टाइप-1 डायबिटीज में मरीज के पाचकग्रंथि में इंसुलिन का उत्पादन नहीं होता है, जबकि टाइप-2 डायबिटीज में शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेती हैं। इसलिए ब्लड ग्लूकोज का स्तर सामान्य रखने के लिए काफी मात्रा में इंसुलिन की जरूरत पड़ती है।