यूं तो आपने सिनेमा घरों में जाकर कई फिल्मों में दमदार एक्शन, सुमधुर गीत, अच्छा कैमरावर्क या शानदार लोकेशन, उम्दा डायलॉग सुने होंगे। कई फिल्मों ने आपके अंदर देशभक्ति को जगा दिया होगा, तो कई ने आपके अंदर एक खिलाड़ी को जगाया होगा। लेकिन इस बीच एक फिल्म सिनेमाघरों में आई है, जिसकी शुरुआत से अंत तक आप रोमांच महसूस करते हैं। एक ऐसी फिल्म जो बार-बार आपके रोंगटे खड़े कर देती है। एक ऐसी फिल्म जो आपके अंदर की कई जिज्ञासा को खत्म करने का काम करती है, एक ऐसी फिल्म जिसे देखने के बाद आपके दिल में जोश...आंखों में आंसू और जुबां पर बस एक ही नाम....सचिन....सचिन....जी हां हम बात कर रहे हैं क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले मास्टर ब्लास्ट सचिन तेंदुलकर पर आधारित डाक्यूफीचर 'सचिन- अ बिलियन ड्रीम्स'। शुक्रवार को यह फिल्म सिनेमाघरों में लग गई, जिसके बाद बस दर्शक कहते नजर आए तो बस ये दो शब्द, सचिन....सचिन........
असल में इस फिल्म की तुलना अन्य कॉमर्शियल फिल्म से करें तो यह बेमानी होगी, लेकिन इस फिल्म में वो सब है जो आपको सिमेमाघर में बांधे रखता है। यूं तो क्रिकेट मैच के दौरान टीवी पर या ग्राउंड पर आपने कई बार सचिन....सचिन....के नारों की गूंजज को सुना होगा, लेकिन आपको कैसा लगेगा जब आप थियेटर में आएं और वहां मौजूद दर्शक फिल्म शुरू होने के साथ ही सचिन...सचिन के नारे लगाने लगे। सही में फिल्म देखने के लिए बैठना ही काफी रोमांचकारी है। फिल्म में सचिन....सचिन की गूंज जितनी बार होती है, दर्शकों के रोंगड़े खड़े हो जाते हैं।
असल में इस फिल्म की बात करें तो यह फिल्म है एक खिलाड़ी के अपने लक्ष्य को हासिल करने के पीछे की मेहनत की। फिल्म में सचिन के बचपन का किरदार निभाया है उनके बेटे अर्जुन तेंदुलकर ने। यह फिल्म कुछ अलग है। इस फिल्म को एक पिता को अपने बच्चों को जरूर दिखानी चाहिए, ताकि वो जान सकें कि कैसे किसी लक्ष्य को पाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है, वहीं परिजनों को भी इसलिए देखनी चाहिए कि किसी परिवार को अपने बच्चे में सचिन जैसे गुण पैदा करने के लिए अपने अंदर किस तरह की त्याग की भावना को पैदा करना होगा।
इस फिल्म में सचिन से जुड़े वो सारे पहलू दिखाए गए हैं, जो सचिन के महान होने के सबूत देते हैं। फिल्म से में देखने को मिलता है कि सचिन किस गेंदबाज की बॉलिंग को लेकर थोड़ा संकोच में रहते थे। पिता की मौत के बाद इंग्लैंड में मैच खेलने के लिए जाने के दौरान उनकी मनोस्थिति कैसी थी, विश्वकप हारने के बाद प्रशंसकों का गुस्सा जाहिर होने पर उन्हें कैसा लगा, और न जाने कितने की अनछुए पहलुओं को लेकर आप लोगों के बीच आई है यह फिल्म, तो जाइये अपने निकट के थियेटर में और लिजिए इस शानदार फिल्म का मजा...क्योंकि जब 140 मिनट की यह फिल्म खत्म होगी तो आपके दिल में जोश, आंखों में आंसू और जुबा पर होगा...सचिन....सचिन...