नई दिल्ली। क सर्वेक्षण में यह बात समाने आई है कि अगले पचास सालों में भारत में रहने वाले 1 अरब तीस करोड़ लोगों के द्वारा बोली जाने वाली 780 बोलियां में करीब 400 बोलियां लुप्त हो जाएंगी। पीप्लुस लिंग्विस्टक सर्व ऑफ इंडिया के सर्वेक्षण ने इससे संबंधित तथ्य सामने रखे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में करीब 6000 बोलियां बोली जाती है, जिनमें से 4000 बोलियों की भविष्य में लुप्त हो जाएंगी। इतना ही नहीं बल्कि अंग्रेजी कई सशक्त भाषाओं हिन्दी, बांग्ला, मराठी, तेलुगू, मलायलम, कन्नड़, गुजराती और पंजाबी के लिए मुश्किल पैदा कर रही है। हालांकि यह बोली सदियों पुरानी हैं, लेकिन मौजूदा समय में इनमें नए शब्दों का आना कम हुआ है। पीएलएसआई के चैयरमैन गणेश एन. डेवी ने कहा कि जब कोई बोली खत्म होती है तो उसके साथ संस्कृति भी खत्म हो जाती है। भारत में पिछले पांच दशकों में 250 बोलियां समाप्त हो चुकी हैं।
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रिपोर्ट में बताया गया है कि उन बोलियों को है जो अदिवासी समुदायों से जुड़ी हैं। डेवी के मुताबिक, कुछ बोलियां ऐसी हैं कि जो एक हजार साल से भी अधिक पुरानी हैं। इनमें मैथिली प्रमुख है,लेकिन मैथिली की तरक्की कमजोर हुई है।
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तेजी से बढ़ रही है भोजपुरी
कुछ भारतीय बोलियां ऐसी है जो तेजी से बढ़ रही हैं। इसमें सबसे अव्वल भोजपुरी है। गणेश डेवी का कहना है कि भोजपुरी का दबदबा बरकरार रहने की वजह इस बोली को बोलने वालों को बढ़ावा देना है। इस बोली से उद्यमिता बढ़ी है।
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मुंबई में 300 बोलियां चलन में
रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई में बोलियों की विविधता बढ़ी है। यहां पर तीन सौ के करीब बोलियां बोली जाती हैं,जिसमें से गुजरात की 40, महाराष्ट्र की 52 और 14 कर्नाटक की बोलियां शामिल है। यहां पर भी भोजपुरी बोलने वाले सबसे अधिक लोग है।