नई दिल्ली। कर्नाटक की राजनीति में रातों-रात बड़ा बदलाव आ गया। अब येदियुरप्पा राज्य के मुख्यमंत्री होंगे। राज्यपाल वजुभाई वाला ने उन्हें गुरुवार की सुबह पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। बता दें कि देर रात राज्यपाल द्वारा सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया गया था। राज्यपाल के इस फैसले के खिलाफ कांग्रेस रात को ही सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई और शपथ ग्रहण को टालने की अर्जी दाखिल कर दी। आधी रात को मुख्य न्यायाधीश ने तीन जजों की पीठ गठित कर इसकी सुनवाई की इजाजत दी। तीनों जजों ने सुनवाई करने के बाद कहा कि वे येदियुरप्पा के शपथ ग्रहण पर रोक लगाने से इंकार दिया। कोर्ट ने कहा कि वह राज्यपाल के विवेकाधिकार पर सवाल खड़े नहीं कर सकती है। कोर्ट ने भाजपा से इस बात को जरूर पूछा कि जब उसके पास 104 विधायक हैं तो वह बाकी के विधायक कहां से लाएगी? अब इस मामले की सुनवाई शुक्रवार को होगी।
गौरतलब है कि रात को सवा 2 बजे से सुबह साढ़े 5 बजे तक चली ऐतिहासिक सुनवाई मंे बीएस येदियुरप्पा के शपथ ग्रहण समारोह पर रोक लगाने की मांग को इंकार कर दिया। कांग्रेस की अर्जी पर सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल के फैसले पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। बताया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस और जेडीएस की याचिका खारिज नहीं की है लेकिन कहा, ‘यह याचिका बाद में सुनवाई का विषय है।’ बता दें कि कोर्ट ने दोनों पक्षों सहित बीएस येदियुरप्पा को भी एक जवाब दाखिल करने का नोटिस जारी किया है। बड़ी बात यह है कि सर्वोच्च न्यायालय ने भाजपा से विधायकों की लिस्ट भी मांगी है। बीएस येदियुरप्पा को अपना बहुमत साबित करने के लिए 15 दिनों का समय दिया गया है।
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यहां गौर करने वाली बात है कि कांग्रेस की तरफ से पेश हुए वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जब किसी दल के पास बहुमत नहीं है तो राज्यपाल ने भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा को सरकार बनाने के लिए क्यों आमंत्रित किया है? भाजपा के पास सिर्फ 104 विधायक हैं। यह पूरी तरह से असंवैधानिक है। सिंघवी कहा कि राज्यपाल ने बहुमत साबित करने के लिए पहली बार किसी दल को 15 दिन का वक्त दिया, जबकि येदियुरप्पा ने 7 दिन का समय मांगा था। सिंघवी ने गोवा का हवाला देकर कहा कि हमारे पास 117, जबकि बीजेपी के पास केवल 104 विधायक हैं तो फिर वह बहुमत कैसे साबित करेगी? इतने विधायकों का टूटना कानूनन मान्य नहीं है।