नेपाल। नेपाल की संसद ने औरतों के हित में एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया है। संसद ने महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान अछूत बताने और उन्हें घर से बाहर निकालने की हिंदू प्रथा चौपदी को अपराध मान्य घोषित कर दिया है। संसद में इस कानून को पूर्व समर्थन से पारित किया गया है। इस कानून के तहत पाए गए आरोपी के लिए संसद ने अपराध की सजा ओर जुर्माना भी तय किया है। अगर कोई भी व्यक्ति किसी महिला को इस प्रथा को मानने के लिए मजबूर करता पाया गया तो उसे दंड स्वरुप तीन महीने की सजा और 3,000 जुर्माना या दोनों भी सजा हो सकती है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने लगभग एक दशक पहले ही चौपदी को बैन कर दिया था, बावजूद इसके ये प्रथा पूरी तरह बंद नहीं हुई थी। ऐसे हालात में संसद ने इसे रोकने के लिए एक कानून बना डाला है।
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एक साल में लागू होगा कानून
इस नए कानून के अनुसार, कोई भी महिला जब अपने मासिक धर्म यानी पीरियड्स में हो तो उसे चौपदी में नहीं रखा जाएगा। उसके साथ अधूत और भेदभाव व्यवहार नहीं किया जाएगा। ये कानून एक साल तक पूर्ण रूप से प्रभाव में आएगा। भारत में आज भी नेपाल के कई समुदाय महिलाओं को उनके मासिक धर्म में अशुद्ध मानते हैं। कुछ इलाकों में तो उन्हें महीनों के उन दिनों में घर से बाहर झोपड़ी में रहना पड़ता है, इसी प्रथा को चौपदी कहते हैं।
चौपदी प्रथा का प्रभाव
इस प्रथा को केवल मासिक धर्म में ही नहीं बल्कि बच्चे को जन्म देने के समय भी लागू किया जाता है। नवजात को जन्म देने के समय यह प्रथा महिलाओं के लिए किसी नर्क या सजा से कम नहीं होती है। उन्हें घर में जाने और कुछ खाने पीने की चीज को हाथ लगाने तक की अनुमति नहीं होती है। जिस झोपड़ी में उन्हें रखा जाता है वहां अनेक प्रकार के खतरे होते हैं। लोगों का कहना है कि इन महिलाओं को ऐसे स्थानों पर रहने से जानवर को खौफ तो रहता ही है साथ ही उन्हें शारीरिक शोषण का डर भी सताता रहता है। इस प्रथा के चलते नेपाल में कई औरतों की जान जा चुकी है। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2016 में चौपदी प्रथा के चलते दो महिलाओं की जान जाने की खबर आई थी। ऐसी कई खबरें आती हैं जहां इन महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाएं भी सुनने में आती हैं।
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क्या लागू हो सकेगा कानून ?
इस प्रथा को अब अपराध घोषित करने के बाद नेपाल में औरतें एक नए सफर में कदम रखेंगी। लेकिन कानून के कुछ जानकार इस बात पर संशय जता रहे हैं कि क्या आखिर कब तक लोग इस प्रथा से पूर्ण रूप से मुक्त हो पाएंगे। उनका कहना है कि एक कुप्रथा को कानून के जरिए खत्म करने में काफी समय लग सकता है, क्योंकि यह प्रथा इन लोगों की मानसिकता से जुड़ी है।