नई दिल्ली । जहां एक ओर भाजपा को इन दिनों उनके सहयोगियों ने घेरते हुए परेशानी में डाल रखा है, वहीं कर्नाटक विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस ने राज्य में एक मास्टर स्टोक खेल डाला है। असल में कांग्रेस ने कर्नाटक में लिंगायतों को अलग धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में मान्यता दे दी है। कांग्रेस के इस फैसले को भाजपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। राज्य की आबादी में 17 प्रतिशत की हिस्सादेरी रखने वाला यह समुदाय परंपरागत रूप से भाजपा का वोटर माना जाता है। एक दशक पहले कर्नाटक में कमल को खिलाने में इस समुदाय ने खास भूमिका निभाई थी। यहां तक की राज्य में भाजपा का मुख्यमंत्री का चेहरा बीएस येद्दियुरप्पा भी इसी समुदाय से आते हैं। राज्य में लिंगायतों का एक तबका पिछले एक दशक से अलग धार्मिक समुदाय की मांग करता रहा है लेकिन पिछले कुछ समय से यह मांग प्रबल हो रही थी।
बता दें कि आने वाले समय में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हैं, जिसे लेकर कांग्रेस के साथ भाजपा ने भी अपनी सियासी दांवपेच लगाना शुरू कर दिया है। अभी भाजपा राज्य में अपना कोई फैसला लेती इससे पहले कांग्रेस ने अपना मास्टर स्टोक खेलते हुए लिंगायतों को अलग धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में मान्यता दे दी है। कांग्रेस के इस कदम के पीछे भाजपा का मानना है कि इस समुदाय के रूप में उसके हिंदू वोट बैंक को तोड़ने के लिए एक ट्रंप 'कार्ड' खेला है। भाजपा लिंगायतों के अलग धार्मिक समुदाय की मांग किए जाने के पीछे कांग्रेस का हाथ बताती आई है। ऐसे में अब कांग्रेस का इन लोगों को अलग धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में मान्यता दिए जाने के पीछे भाजपा एक राजनीति साजिश बता रही है।
असल में 80 के दशक की शुरुआत में रामकृष्ण हेगड़े ने लिंगायत समाज का भरोसा जीता। हेगड़े की मृत्यु के बाद बीएस येदियुरप्पा लिंगायतों के नेता बने। राज्य में अपने संख्या बल और आर्थिक रूप से मजबूत होने के चलते इन लोगों का राज्य की राजनीति में दखल भी है। इसका असर उस समय देखने को मिला जब भाजपा ने 2013 में विधानसभा चुनावों में जब भाजपा ने येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाया तो समाज के लोगों ने भाजपा को न चुनते हुए कांग्रेस के पक्ष में अपना वोट दिया। नतीजा ये रहा कि कांग्रेस फिर से सत्ता पर काबित हो गई।
एक बार फिर भाजपा ने अपने मिशन-2019 के तहत येदियुरप्पा को इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी के सीएम पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया है। अब ऐसे में लिंगायत समुदाय की लंबे समय से चली आ रही मांग को कांग्रेस ने पूरा करके कहीं न कहीं अपने लिए एक मजबूत आधार बना लिया है, लेकिन येदियुरप्पा को पार्टी का चेहरा बनाने के बाद अब देखना ये होगा कि ये समाज भाजपा के पक्ष में लौटकर आएगा कि नहीं।