नई दिल्ली । एक बार फिर से भाजपा ने कर्नाटक चुनावों में शानदार प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस को धूल चटा दी है। पिछले चुनावों में पूर्ण बहुमत पाने वाली कांग्रेस इस बार 70 सीटों के इर्द-गिर्द नजर आ रही है, जबकि भाजपा बहुमत के बिल्कुल करीब। अब इस बार के विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिले वोट प्रतिशत और जातिगत समीकरणों की समीक्षा करें तो सामने आता है कि भले ही देश में मुसलमानों को भाजपा का वोटर बनने से रोकने के लिए कई तरह के प्रपंच किए गए हों, लेकिन एक बार फिर कर्नाटक चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं ने भाजपा पर अपना विश्वास जताया है। अभी तक के मिले आंकड़ों पर नजर डालें तो सामने आता है कि जहां भाजपा को 7 प्रतिशत मुस्लिमों ने वोट दिया, वहीं भाजपा को भी 4 फीसदी मतदाताओं ने अपना वोट देकर अपने लिए सबका साथ - सबका विकास की मांग की है। हालांकि पिछली बार की तुलना में कांग्रेस को जहां 1 प्रतिशत मुस्लिम का नुकसान हुआ है वहीं भाजपा को इस बार मुस्लिम मतदाताओं ने भी अपना समर्थन दिया।
भाजपा को करीब 17 फीसदी अधिक वोट
अगर पिछले विधानसभा 2013 चुनावों पर नजर डालें तो उस दौरान भाजपा को मात्र 19.9 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन इस बार भाजपा के पक्ष में अभी तक मिले आंकड़ों के अनुसार, 37 फीसदी वोट पड़े हैं। ऐसे में अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले बार की तुलना में इस बार भाजपा के हिस्से में 17 फीसदी ज्यादा वोट पड़ा है। हालांकि बात कांग्रेस की करें तो उन्हें पिछली बार के बराबर ही वोट पड़ते नजर आ रहे हैं, लेकिन इस सब के चलते उनकी हार का कारण क्या रहा, इस पर मंथन शुरू हो गया है।
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46 साल में सबसे ज्यादा वोटिंग हुई
कर्नाटक में 12 मई को 224 सीटों में से 222 पर एक फेज में चुनाव हुए थे, जिसमें 46 साल बाद इस बार सबसे ज्यादा 72.13% वोटिंग हुई। हालांकि पूर्व में 2008 (65.1%) के मुकाबले 2013 (71.45%) में करीब 6% वोटिंग ज्यादा हुई थी। इस दौरान सरकार बदल गई थी।
पिछली बार की तरह वोट नहीं कटे
कर्नाटक में भाजपा ने जब पहली बार अपने बूते सरकार बनाई थी तो 2008 में कमान येदियुरप्पा को सौंपी थी। लेकिन बाद में खनन घोटालों में आरोपों के चलते येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। बाद में पार्टी से नाराज होकर येदियुरप्पा ने दूसरी पार्टी कर्नाटक जनता पक्ष बना ली और 2013 का चुनाव अलग लड़ा। 2013 के चुनाव में भाजपा के हाथ से सत्ता निकल गई थी। येदियुरप्पा की पार्टी को 6 सीटें मिलीं लेकिन 9.8% वोट मिले। माना गया कि इसी 9.8% वोट शेयर ने भाजपा का रास्ता रोक दिया। इस बार ऐसा नहीं था। पार्टी में वापसी कर चुके येदियुरप्पा ही राज्य में पार्टी का चेहरा और सीएम कैंडिडेट थे। इससे पिछली बार की तरह भाजपा के वोट नहीं कटे और वोटर लामबंद हो गए।
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लिंगायत का कार्ड उलटा पड़ा
वहीं इस बार कांग्रेस की सिद्धारमैया का लिंगायत कार्ड उलटा पड़ गया। असल में सिद्धारमैया ने चुनाव की तारीखों का एलान होने से ठीक पहले राज्य में लिंगायत कार्ड खेला। इस समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने का विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर केंद्र की मंजूरी के लिए भेजा। माना जा रहा है कि सिद्धारमैया का यह दांव उलटा पड़ा। राज्य में लिंगायतों की आबादी 17% से घटाकर 9% मानी गई। इस कदम से वोक्कालिगा समुदाय और लिंगायतों के एक धड़े वीराशैव में भी नाराजगी थी। इससे उनका झुकाव भाजपा की तरफ बढ़ा।
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