नई दिल्ली । आने वाले समय में संभव है कि देश में महिलाओं और पुरुषों की शादी की न्यूनतम कानूनी उम्र समान हो सकती है। विधि आयोग ने सरकार को दिए सुझाव में देश में समान नागरिक संहिता की बात कही है। इस दौरान आयोग ने सुझाव दिया है कि देश में महिलाओं और पुरुषों के लिए शादी की न्यूनतम कानूनी उम्र समान होनी चाहिए। आयोग का कहना है कि भारत में अब दो वयस्कों के बीच शादी की उम्र को अलग-अलग किए जाने का कोई औचित्य नहीं है। अब लड़का और लड़की की शादी की उम्र समान की जाए। पुरानी व्यवस्था को अब खत्म किया जाए, जिसके तहत लड़की के लिए शादी की न्यूनतम कानूनी उम्र 18 साल तो लड़के के लिए 21 साल तय है। इस दौरान विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता को लेकर कहा, फिलहाल देश में इसकी जरूरत नहीं है।
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बयान से मोदी सरकार को झटका
आपको बता दें कि समान नागरिक संहिता मोदी सरकार के एजेंडा में शामिल रहा है। ऐसे में आयोग का ये बयान मोदी सरकार के लिए बड़ा झटका है। समान नागरिक संहिता मोदी सरकार के एजेंडा में शामिल रहा है। ऐसे में आयोग का ये बयान मोदी सरकार के लिए बड़ा झटका कहा जा सकता है।
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परिवार कानून में सुधार
परिवार कानून में सुधार पर अपने परामर्श पत्र में आयोग ने कहा, 'अगर बालिग होने की 18 साल की उम्र को कानूनी मान्यता दी हुई है, जिसके तहत उन्हें अपनी सरकारें चुनने का भी अधिकार है तो उसे अपना जीवन साथी चुनने लिए भी इस उम्र में ही सक्षम माना जाए। बालिग होने की उम्र (18 साल) को भारतीय बालिग अधिनियम 1875 के तहत महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए शादी की कानूनी उम्र के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए।
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पति-पत्नी की उम्र में अंतर का आधार नहीं
आयोग ने अपने पत्र में लिखा है कि पति और पत्नी के लिए उम्र में अंतर का कोई कानूनी आधार नहीं है क्योंकि शादी कर रहे दोनों लोग हर तरह से बराबर हैं और उनकी साझेदारी बराबर वालों के बीच वाली होनी चाहिए। इस दौरान आयोग ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए लिखा है कि पति-पत्नी की उम्र में अंतर पुरानी रूढ़िवादी बेकार बातों को बढ़ावा देने जैसा है।