नई दिल्ली । न्यायपालिका की खामियों को लेकर शुक्रवार को मीडिया के सामने आए सुप्रीम कोर्ट के चार जजों के आरोपों से सरकार में हड़कंप मच गया है। सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों के देश के लोकतंत्र को खतरा बताए जाने के बयान पर अब विपक्षी दलों ने इसे मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है। हालांकि इस सब के बीच भाजपा के वरिष्ठ नेता और वकील सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि देश की आजादी के बाद यह सही में देश की न्यायपालिका को लेकर बड़ी समस्या खड़ी हुई है। ये बहुत ही गंभीर मामला है। जजों ने बहुत बलिदान दिए हैं और उनकी नियत पर सवाल नहीं उठाए जा सकते। चारों जज बेहद ईमानदार हैं। वो याचिकाकर्ता की बातें जिस तरह से सुनते हैं और फैसला लिखते हैं वह काबिले तारीफ है। जजों की वेदना को समझना चाहिए। इस दौरान स्वामी ने कहा कि पीएम मोदी को इस मामले में दखल देना चाहिए। वहीं इस घटनाक्रम के बाद जहां चीफ जस्टिस के भी पत्रकार वार्ता आयोजित करने की बातें सामने आ रही हैं, वहीं चीफ जस्टिस ने एटॉर्नी जनरल के साथ बैठक की है। इसी क्रम में पीएम मोदी ने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को बैठक के लिए बुलाया।
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वहीं इस मुद्दे पर वरिष्ठ वकील उज्जवल निकम ने कहा कि ये न्यायपालिका के लिए काला दिन है। सुप्रीम कोर्ट के जजों की पत्रकार वार्ता के बाद हर कोई न्यायपालिका के फैसले को शक की निगाहों से देखेगा। अब से हर फैसले पर सवाल उठने शुरू हो जाएंगे। बता दें कि देश की आजादी के बाद यह पहला मौका होगा, जब देश के चार तीसरे स्तंभ न्यायपालिका ने चौथे स्तंभ यानि मीडिया के सामने आकर अपनी बात रखी है। चीफ जस्टिस के बाद दूसरे सबसे सीनियर जज जस्टिस चेलमेश्वर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि कभी-कभी होता है कि देश के सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था भी बदलती है। सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन ठीक तरीके से काम नहीं कर रहा है, अगर ऐसा चलता रहा तो लोकतांत्रिक परिस्थिति ठीक नहीं रहेगी। उन्होंने कहा कि हमने इस मुद्दे पर चीफ जस्टिस से बात की, लेकिन उन्होंने हमारी बात नहीं सुनी गई।
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जजों ने बताया कि चार महीने पहले हम सभी ने चीफ जस्टिस को एक पत्र लिखा था, जो प्रशासन से संबंधित था। हमने इस बारे में कई बार मुद्दे को उठाया लेकिन हर बार हमें अनसुना कर दिया गया। इस दौरान चारों जजों ने कहा कि चीफ जस्टिस पर देश को फैसला करना चाहिए, हम बस देश का कर्ज अदा कर रहे हैं।