Saturday, April 20, 2024

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गर्भपात कराने के लिए पति की इजाजत की जरूरत नहीं- सुप्रीम कोर्ट

अंग्वाल न्यूज डेस्क
गर्भपात कराने के लिए पति की इजाजत की जरूरत नहीं- सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। अब बिना पति के इजाजत के महिलाएं गर्भपात करा सकेंगी। देश की सर्वोच्च अदालत में एक पति के द्वारा याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस ए.एम खानविलकर  की पीठ ने यह फैसला दिया है। पीठ का कहना है कि बच्चे को जन्म देने वाली महिला वयस्क है, वह एक मां है और उसे पूरा अधिकार है कि वह अपने बच्चे को जन्म देना चाहती है या नहीं। गर्भपात कराने के लिए महिला को पति से सहमति लेना जरूरी नहीं है। 

महिला का अधिकार

गौरतलब है कि अपनी पत्नी से अलग हो चुके एक पति ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा था कि उसकी सहमति के बिना ही पत्नी के भाई, पिता और दो डाॅक्टरों ने मिलकर उसका गर्भपात करा दिया। इस पर कोर्ट ने कहा कि बच्चे को जन्म देने वाली महिला बालिग है और उसे इसका पूरा अधिकार है। इसके लिए पति की इजाजत लेने की कोई जरूरत नहीं है। 

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ये  है मामला

आपको बता दें कि साल 2012 में अपनी पत्नी से अलग हो चुके एक पति ने अपने ससुराल वालों पर उसकी पत्नी का अवैध गर्भपात कराने का आरोप लगाते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह कहा था कि बच्चे को जन्म देने का अधिकार पूरी तरह से महिलाओं का है। अब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस ए.एम खानविलकर की बेंच ने ये फैसला सुनाया है। फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गर्भपात का फैसला लेने वाली महिला वयस्क है, वो एक मां है ऐसे में अगर वह बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती है तो उसे गर्भपात कराने का पूरा अधिकार है। ये कानून के दायरे में आता है। 

 


 

 

 

 

जानें क्या है पूरा मामलार 

जिस व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी उसकी शादी सन् 1995 में हुई थी। लेकिन उसके और उसकी पत्नी के रिश्ते में खटास आने लगी जिसके बाद पत्नी अपने बेटे के साथ चंडीगढ़ में अपने मायके चली गई। सन् 1999 से महिला अपने मायके में रह रही थी। नवंबर 2002 से दोनों ने फिर साथ रहने का फैसला लिया। लेकिन फिर बात नहीं बनी और 2003 में दोनों की बीच तनाव हुआ और तलाक हो गया।2003 में जब दोनों ने तलाक लिया उस समय महिला प्रेगनेंट थी। लेकिन महिला इस बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती थी और गर्भपात करवाना चाहती थी। लेकिन पति ने इस बात का विरोध किया और उसके परिवारवालों से इस बारे में बात की।  बाद में महिला ने अपने परिवार से संपर्क किया, जिसके बाद माता-पिता महिला को लेकर चंडीगढ़ के अस्पताल ले गए यहां पति ने अस्पताल के दस्तावेज जिसमें गर्भपात की इजाजत मांगी गई थी पर भी हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।इस पूरे मामले के बाद पति ने कोर्ट में महिला के माता-पिता, उसके भाई और डॉक्टर्स पर 30 लाख रुपए के मुआवजे का केस कर दिया। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा कि विवाद के बाद दोनों के बीच शारीरिक संबंध की इजाजत है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि महिला गर्भ धारण करने के लिए भी राजी हुई है, यह पूरी तरह से महिला पर निर्भर है कि वह बच्चे को जन्म देना चाहती है या नहीं। पति उसे बच्चे को पैदा करने के लिए मजबूर  

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