फरीदाबाद । देश के प्राइवेट अस्पतालों में किस तरह मरीजों को लूटा जा रहा है, इसका एक और उदाहरण दिल्ली से सटे फरीदाबाद के एक निजी अस्पताल ने दिया है। अमानवीयता का उदाहरण पेश करते हुए एशियन अस्पताल ने बुखार से पीड़ित एक गर्भवती महिला को इलाज के लिए अपने यहां भर्ती किया। हालांकि बुखार के इलाज के दौरान गर्भवति और उसके गर्भ में पल रहे 7 माह के बच्चे की मौत हो गई। इस दौरान अस्पताल ने पीड़ित परिजनों को महिला के शव के साथ 18 लाख रुपये का बिल भी थमा दिया। अस्पताल का कहना है कि महिला का 22 दिन तक इलाज चला, लेकिन वे महिला और उसके बच्चे को नहीं बचा पाए। हालांकि इस पूरे मुद्दे पर बुखार आने पर अस्पताल में भर्ती करवाने वाले परिजनों का कहना है कि अस्पताल ने आनन-फानन बिल बनाकर थमा दिया है। इस मामले की जांच होनी चाहिए।
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मिला जानकारी के मुताबिक, फरीदाबाद के गांव नचौली निवासी सीताराम की गर्भवती 20 वर्षीय बेटी श्वेता को 12 दिसंबर को बुखार आया था, जिसे अगले ही दिन फरीदाबाद के एशियन हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। परिजनों के अनुसार, श्वेता को बुखार था, लेकिन उसे आईसीयू में भर्ती कर दिया गया। बाद में डॉक्टरों ने टाइफाइड बताया और आंतों में इंफेक्शन की बात कही। इलाज के दौरान ही डॉक्टरों ने बताया कि गर्भवति श्वेता के पेट में पल रहे बच्चे की मौत हो गई है, ऐसे में उसका ऑपरेशन करने के लिए कहा गया। पीड़ित परिजनों का कहना है कि इस ऑपरेशन के लिए अस्पताल प्रशासन ने उनसे साढ़े तीन लाख रूपये जमा कराने को कहा गया। श्वेता के पिता का कहना है कि अस्पताल प्रशासन ने पैसे जमा करवाने के बाद ही ऑपरेशन शुरू होने की बात कही।
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उन्होंने जल्द ही पैसे जमा करवाने की बात कहते हुए जल्द से जल्द ऑपरेशन करने की गुहार लगाई लेकिन अस्पताल प्रशासन ने नहीं सुना। ऐसे में श्वेता के पेट में इंफेक्शन और फेल गया। इसके बाद उपचार के दौरान श्वेता के पिता से अस्पताल ने कई बार पैसे जमा कराने को कहा। हालांकि अस्पताल में 22 दिन तक इलाज चलने के बाद श्वेता ने भी दम तोड़ दिया।
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इस सब के बाद अस्पताल प्रशासन ने श्वेता के शव के साथ ही पीड़ित परिजनों को 18 लाख रुपये का बिल थमा दिया। श्वेता के पिता सीताराम का आरोप है कि अस्पताल की लापरवाही के चलते ही उनकी बेटी और उसके पेट में पल रहे बच्चे की मौत हुई है। ऐसे में अस्पताल के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। उनका आरोप है कि अस्पताल की तरफ से जब और पैसे की मांग की गई तो उन्होंने पैसे जमा करने से मना कर दिया, जिसके बाद कुछ ही देर में श्वेता को मृत घोषित कर दिया।
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वहीं, इस पूरे घटनाक्रम पर एशियन अस्पताल के चेयरमैन (क्वालिटी एंड सेफ्टी) डॉक्टर रमेश चांदना का कहना है कि श्वेता गर्भवती थी, साथ ही उसे 8-10 दिन से बुखार भी था। डॉक्टर के मुताबिक, हमने अस्पताल के आइसीयू में भर्ती कर टाइफायड का इलाज शुरू किया था। हम श्वेता के बच्चे को नहीं बचा सके। हमने पाया कि उसकी आंत में छेद था। हमने ऑपरेशन किया, लेकिन उसे बचा नहीं सके।
वहीं, अस्पताल की सफाई से श्वेता के परिजन संतुष्ट नहीं है और अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग कर रहे हैं। पिता सीता राम का यह भी कहना है कि उसे अपनी बीमार बेटी से मिलने तक नहीं दिया गया। जब वह 5 जनवरी को आईसीयू में एडमिट श्वेता से मिलने गए तो उनकी बेटी बेसुध पड़ी हुई थी।
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बता दें कि कुछ ऐसा ही पिछले दिनों गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में हुआ था जब डेंगू पीड़ित बच्ची का कई दिनों तक इलाज करने के बाद डॉक्टर उसे बचा नहीं पाए, लेकिन अस्पताल प्रशासन की ओर से आनन-फानन सामान को जोड़ते हुए परिजनों को 16 लाख रुपये काबिल थाम दिया गया था।