नई दिल्ली/अहमदाबाद । गुजरात विधानसभा चुनावों के लिए रणभेरी बज चुकी है। राजनीतिक के इस 'महाभारत' में भाजपा के साथ कांग्रेस ने भी अपने तरकश में सभी तीखे और कुछ अचूक तीरों को रख लिया है। इससे पहले जहां कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने देवपूजा को भी अपना एक हथियार बनाया, वहीं भाजपा ने भी राहुल गांधी के जहर बुझे तीरों की काट के लिए काउंटर प्लान बनाया है। हालांकि इस सब के बीच अगर बात कांग्रेस की करें तो कांग्रेस उपाध्यक्ष ने सत्तारूढ़ भाजपा को घेरने के लिए अपने तरकश में कुछ ऐसे 'तीर' रखे हैं, जिससे भाजपा चोटिल हो रही है। पिछले कुछ समय में इन तीरों ने भाजपा को घेरने के साथ अपनी रणनीति में बदलाव करने को भी मजबूर किया है। अगर ये कहा जाए कि राहुल गांधी गुजरात विधानसभा को अपने पार्टी अध्यक्ष पद के लॉचिंग पैड के रूप में देख रहे हैं तो गलत नहीं होगा।
खुद को पार्टी अध्यक्ष पद के लिए साबित करना
असल में गुजरात विधानसभा चुनाव कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के लिए काफी अहम हैं। जहां एक ओर इन चुनावों में कांग्रेस की जीत कांग्रेस अध्यक्ष पद पर राहुल के दावे को मजबूत कर देगी, वहीं 2019 के लोकसभा चुनावों में गुजरात विधानसभा के परिणाम काफी प्रभाव डालने वाले होंगे। इस सब के चलते राहुल गांधी के पिछले कुछ समय के बयानों पर डालें तो वह पीएम मोदी को उन्हीं के अंदाज में टक्कर देते नजर आ रहे हैं। चाहे बात उनके भाषणों की हो या सुरक्षा घेरा तोड़ते हुए किसी बच्ची के साथ सेल्फी लेने की।
मंदिरों के दर्शनों से लेकर नवसृजन यात्राएं
असल में पार्टी अध्यक्ष पद पर आम सहमति बनने के बाद राहुल खुद को पद के लायक साबित करने की मुहिम में जुटे नजर आ रहे हैं। अब चाहे बात ठेठ गुजराती अंदाज, मंदिरों के दर्शन, ढाबे पे खाना, चाय की दुकानों पर चर्चा, कामगारों के साथ मुलाकातें, बड़े-बुजुर्गों, किसानों के साथ संवाद तो युवाओं के साथ सेल्फी ये कुछ राहुल गांधी के बदले हुए अंदाज नजर आते हैं। इतना ही नहीं अपने भाषणों में भी अब पहले से ज्यादा प्रभाव नजर आता है।
हिन्दू कार्ड बनाम जातीय कार्ड
पिछले तीन सालों में शायद यह पहला मौका होगा, जब गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, टीम मोदी को टक्कर देते नजर आ रहे हैं। चुनावी रणनीति की बात करें तो इस बार राहुल गांधी के मोदी के उस ट्रंप कार्ड की काट खोजी जिसने 2014 के चुनावों में कांग्रेस को कमोबेश हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया। असल में मोदी सरकार के हिंदू कार्ड की जवाब राहुल गांधी ने जातीय कार्ड से दिया है। बिहार विधानसभा चुनाव इसका उदाहारण है, जिसमें भाजपा को जातीय समीकरणों के चलते ढेर होना पड़ा था। कुछ इसी रणनीति के तहत टीम राहुल इस बार भाजपा को घेरने में कामयाब होती नजर आ रही है।
पाटीदार-ओबीसी-दलित-आदिवासी एक साथ
भाजपा की रणनीति को ढेर करने के लिए राहुल गांधी ने गुजरात में पाटीदार-ओबीसी-दलित-आदिवासी समाज को एक जुट करना शुरू कर दिया है। इतना ही नहीं पाटीदार-ओबीसी-दलित समाज के तीन युवा नेताओं को भी भाजपा के खिलाफ खड़ा कर एक तरह से भाजपा के हिंदू कार्ड पर जातीकार्ड खेल दिया है, जिसमें भाजपा हमेशा असहज दिखती है। इन तीनों समाज के मतों को देखें तो करीब 70 फीसदी से ऊपर की हिस्सेदारी है। राहुल गांधी ने इन तीन समाजों की त्रिमूर्ति अल्पेश, जिग्नेश और हार्दिक को एक साथ लाकर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोलने में सफलता पाई है।
अपनी एंटी हिंदू छवि तोड़ी
जहां इस बार राहुल गांधी अपनी रणनीति में सफल होते नजर आ रहे हैं, वहीं अपनी एंटी हिंदू वाली छवि को खत्म करते दिख रहे हैं। अपनी नवसृजन यात्राओं के तहत वह कांग्रेस पर लगे 'हिंदू विरोधी' और 'अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण' जैसे आरोपों का भी जवाब देने का प्रयास कर रहे हैं। अगर देखा जाए तो 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार की एक बड़ी वजह एंटनी कमेटी ने हिंदू विरोधी छवि मानी थी। राहुल ने इस बार गुजरात चुनावों के जरिए अपनी इसी छवि को खत्म करने की रणनीति अपनाई है। अपनी नवसजृन यात्रा के तहत राहुल सौराष्ट्र के द्वारकाधीश मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ की। इतना ही नहीं मुस्लिम बहुल इलाकों में होनी वाली रैलियों में राहुल के साथ संत महंत मंच पर नजर आते हैं।
मोदी अंदाज में राहुल गांधी
अगर बात राहुल गांधी को कांग्रेस का युवराज कहे जाने पर करें तो खुद राहुल गांधी अब इस छवि को तोड़ने की कवायद में जुट गए हैं। पार्टी की कमान अपने हाथों में लेने से पहले वह इस बार नए अंदाज में नजर आ रहे हैं। राहुल ने गुजरात यात्रा के दौरान जनता से सीधे संवाद कर रहे हैं। अपने भाषणों के जरिए भी वह लोगों से अपनी बातों को मनवाते नजर आए। पहले की तुलना में राहुल की रैलियों में इस बार भीड़ भी ज्यादा नजर आई। वह बच्चों के बीच जाकर सेल्फी लेते हैं, तो सुरक्षा घेरा तोड़कर किसी बच्चे से मिलने चले जाते हैं। यानी अंदाज भले ही पीएम मोदी वाला हो, लेकिन जनता को उनका यह या रूप लुभा तो रहा है।
लक्ष्य 2019 को बनाया है
भले ही गुजरात चुनाव को राहुल अपने पार्टी अध्यक्ष पद के लिए लॉचिंग पैड के रूप में देख रहे हो, लेकिन उनकी ये सारी कवायद 2019 के लोकसभा चुनावों को लेकर भी है। राहुल की रणनीति पर नजर डालें तो वह गुजरात विधानसभा चुनावों में ऐसे मुद्दों को उठा रहे हैं जो लो आगामी लोकसभा चुनावों में भी काफी अहम साबित होंगे। इतना ही नहीं वह इस बार इधर-उधर की बातों से बचते हुए तथ्यों पर बात कर रहे हैं।