नई दिल्ली। अब आपकी निजी जानकारी किसी भी रूप में सार्वजानिक नहीं हो पाएंगी। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार करार दिया है। 9 जजों की संवैधानिक पीठ ने यह ऐतिहासिक फैसले सुनाया है। इस फैसले का असर आधार कार्ड से जुड़े मामले पर भी हो सकता है, जिसपक कोर्ट बाद में फैसला सुनाएगा। इस दौरान कोर्ट ने कहा की निजता का हनन करने वाले कानून गलत हैं। अब कोई भी आधार कार्ड ,पैनकार्ड समेत क्रेडिट कार्ड की जानकारी सार्वजानिक नहीं कर पाएगा। इतना ही नहीं कोर्ट ने यह भी कहा कि नया कानून बनने पर इसे चुनौती दिया जाना संभव है।
बता दें कि कोर्ट ने साफ कर दिया है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है। यह अधिकार संविधान के आर्टिकल 21 (जीने के अधिकार) के तहत आता है। 9 जजों की पीठ ने वर्ष 1954 में 8 जजों की संवैधानिक बेंच के एमपी शर्मा केस और 1961 में 6 जजों की बेंच के खड्ग सिंह केस में दिए फैसले को पलट दिया। इन दोनों ही फैसलों में निजता को मूलभूत अधिकार नहीं माना गया था।
सरकार को लगा झटका
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से सरकार को झटका लगा है। केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत में कहा था कि निजता कोई मौलिक अधिकार नहीं है। लेकिन कोर्ट द्वारा इसे मौलिक अधिकार दिए जाने से सरकार को फौरी तौर पर झटका तो लगा ही है, हालांकि कोर्ट ने इस दौरान साफ कर दिया कि नया कानून लाकर इस अधिकार को चुनौती दिया जाना संभव है। बहरहाल, इस ऐतिहासिक फैसले के बाद अब इसका असर आधार कार्ड और दूसरी सरकारी योजनाओं पर लागू होगा।
ये थे 9 जजों की पीठ में
चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस चेलामेश्वर, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस आरके अग्रवाल, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम सप्रे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस अब्दुल नजीर ।
इन्होंने लगाई थी याचिका
असल में कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व जज केएस पुत्तास्वामी ने 2012 में आधार स्कीम को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी। याचिकाकर्ताओं में बी विल्सन, अरुणा रॉय और निखिल डे भी शामिल हैं।
ये थी सरकार की दलील
बता दें कि इस मामले में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि निजता का अधिकार जीवन के अधिकार के सामने गौण महत्व रखता है। अगर इस मामले में कोई भी टकराव होता है तो जीवन का अधिकार ही ऊपर रहेगा। निजता को जीवन जीने का अधिकार और स्वतंत्रता के अधिकार के साथ जोड़कर नहीं देखा जा सकता। निजता को मूल अधिकार कहा जा सकता है लेकिन यह पूरी तरह से अनियंत्रित नहीं है बल्कि शर्तों के साथ होगा। ऐसे में निजता के अधिकार को पूरी तरह से मौलिक अधिकार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।