लखनऊ । 17 लोकसभा के लिए मतगणना शुरू हो गई है । एग्जिट पोल के अनुसार ही प्राथमिक रूझान सामने आ रहे हैं, जिसमें एक बार फिर से यूपी में भाजपा को बढ़त नजर आ रही है । मौजूदा रूझानों पर नजर डालें तो इस बार सपा-बसपा का गठबंधन भी भाजपा को रोकने में नाकामयाब रहा था । उपचुनावों में गठबंधन को मिली बड़ी सफलता से उत्साहित सपा -बसपा के वोट बैंक ने इस बार अपने दलों को उतनी प्राथमिकता नहीं दी, जितना विश्वास मोदी सरकार पर जताया है । आंकड़े बताते हैं कि यूपी में न केवल भाजपा का वोट प्रतिशत 10 फीसदी बढ़कर 51 फीसदी पाया गया है, जबकि सपा-बसपा का वोट प्रतिशत गिरा है । इसमें खासकर सपा ने अपना वोट बैंक खोया है । जबकि कांग्रेस कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के कथित प्रचंड समर्थन के बावजूद अपना वोट प्रतिशत 6 फीसदी से ज्यादा नहीं बढ़ा पाय है । यूपी में भाजपा की बढ़त के ये 4 कारण अहम रहे हैं।
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युवाओं ने जाति को छोड़ मोदी का समर्थन किया
इस बार के आंकड़ों में साफ हो गया था कि 2019 के लोकसभा चुनावों में पहली बार वोट डालने वाले युवा मतदाता सीटों पर काफी प्रभाव डालेंगे । यूपी को लेकर आईं कई रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि वो केंद्र की मोदी सरकार से प्रभावित हैं और अगर वो मोदी के समर्थन में अपना पहला वोट डालते हैं तो गठबंधन के दम को फीका कम कर सकते हैं। हालांकि इन युवाओं ने अपनी जाति और दलगत राजनीति से ऊपर उठकर देश के नाम पर वोट किया है।
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कांग्रेस के कमजोर उम्मीद
इस बार यूपी में चुनाव लड़ने के लिए देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को सही उम्मीदवार ही नहीं मिले । पार्टी के कई नेताओं ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया था । ऐसे में कांग्रेस यूपी की 80 सीटों पर दमदार उम्मीदवार खड़े नहीं कर पाई । खुद पूर्वी उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपने बयान में कह दिया था कि उनके उम्मीदवार भाजपा के वोट काटेंगे । उन्होंने उम्मीदवारों के कमजोर होने की बात भी मानी थी । इसका सीधा लाभ भाजपा को मिला है।
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सपा-बसपा के वोटर नहीं थे सहज
इस सब के बीच यूपी में भले ही मायावती और अखिलेश यादव ने अपनी अपनी पार्टियों का गठबंधन कर लिया हो , लेकिन पार्टी के कई कार्यकर्ता और नेता इससे सहमत नहीं थे । कई बार मंचों से दोनों नेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं से अपील की थी कि वो दूसरे दल से गठबंधन के उम्मीदवार को जीताने में भी आगे आएं । दोनों दलों का इस बार वोट प्रतिशत गिरा है । आंकड़ों और रूझान से सामने आ रहा है कि बसपा के उम्मीदवार कुछ सीटों पर आगे हैं, लेकिन सपा के उम्मीदवार पीछे । इससे साफ हो रहा है कि सपा के उम्मीदवारों को मायावती के वोट बैंक का समर्थन नहीं मिला ।
सपा को लेकर यादव समाज में मतभेद
इतना ही नहीं यूपी में यादवों के भीतर भी फूट नजर आई । जहां मुलायम सिंह परिवार के भीतर हुई फूट का असर उनकी राजनीति पर पड़ा वहीं, लोकसभा चुनावों में भी इसका असर देखने में आया । यूपी में समाजवादी पार्टी का वोट बैंक टूटता नजर आया । खुद यादव समाज के लोग जहां परिवार वालों के गतिरोध से छिटक गया , वहीं वड़ी संख्या में यादव समाज के लोगों ने मोदी को चुना ।