Thursday, April 25, 2024

Breaking News

   एमसीडी में एल्डरमैन की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर SC 8 मई को करेगा सुनवाई     ||   यूक्रेन से युद्ध में दिसंबर से अब तक रूस के 20000 से ज्यादा लड़ाके मारे गए: अमेरिका     ||   IPL: मैच के बाद भिड़ गए थे गौतम गंभीर और विराट कोहली, लगा 100% मैच फी का जुर्माना     ||   पंजाब में 15 जुलाई तक सरकारी कार्यालयों में सुबह 7:30 बजे से दोपहर दो बजे तक होगा काम     ||   गैंगस्टर टिल्लू की लोहे की रोड और सूए से हत्या, गोगी गैंग के 4 बदमाशों ने किया हमला     ||   सुप्रीम कोर्ट ने 'द केरल स्टोरी' पर बैन लगाने की मांग वाली याचिका पर तुरंत सुनवाई से किया इनकार     ||   नीतीश कटारा हत्याकांड: SC में नियमित पैरोल की मांग करने वाली विशाल यादव की याचिका खारिज     ||   'मैंने सिर्फ इस्तीफा दिया है, बाकी काम करता रहूंगा' नेताओं के मनाने पर बोले शरद पवार     ||   सोनिया गांधी दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में भर्ती    ||   कर्नाटक हिजाब केस में SC ने तुरंत सुनवाई से इंकार किया    ||

दुनिया भर के 15 हजार वैज्ञानिक बोले- मानव जाति के अस्तित्व पर खतरा बढ़ा, बचने का अंतिम मौका

अंग्वाल न्यूज डेस्क
दुनिया भर के 15 हजार वैज्ञानिक बोले- मानव जाति के अस्तित्व पर खतरा बढ़ा, बचने का अंतिम मौका

नई दिल्ली । ये हमारी गलतियों को सुधारने का शायद अंतिम होगा, अगर हम अभी भी नहीं सुधरे तो बढ़ती आबादी और प्रदूषण के चलते वातावरण में घुलते जहर ने मानव जाति के अस्तित्व के लिए जो खतरा खड़ा कर दिया है, उससे बच पाना मुश्किल होगा। हाल में दुनिया के 184 देशों के 15 हजार से ज्यादा वैज्ञानिकों ने यह चिंता जताई है। इन वैज्ञानिकों की रिपोर्ट बायोसाइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है। हालांकि इससे पहले भी वैज्ञानिकों के एक बड़े समूह ने 25 साल पहले प्रकृति और बढ़ती आबादी को लेकर ऐसी ही चिंता जताई थी, लेकिन हालात सुधरने के बजाए और चिंताजनक हो गए हैं। 

वातावरण में खतरनाक बदलाव 

वैज्ञानिकों की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रीनहाउस गैसों के प्रयोग से हाल के सालों में जलवायु में बड़ी तेजी से खतरनाक बदलाव दर्ज किए गए हैं। पर्यावरण पर मानव के बढ़ते हस्तक्षेप से जीव-जंतु अभूतपूर्व गति से खत्म हो रहे हैं। दुनिया का छठा विनाश काल शुरू हो चुका है। इस सदी के अंत तक ढेरों जीव-जंतु इसमें समा जाएंगे।

कार्बन उत्सर्जन बढ़ने से बढ़ी आफत

रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में बढ़ रहे कार्बन उत्सर्जन से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या दिनों दिन विकराल हो रही है। जीवाश्म ईंधन का प्रयोग, गैर पर्यावरणीय खेती और जंगलों की कटाई के चलते यह समस्या और विकराल रूप धारण कर चुकी है। इसी का नतीजा है कि कि आज लोगों को पीने के लिए साफ पानी नहीं मिल रहा है। वहीं हमारी आबोहवा में जहर घुल चुका है। प्रदूषण स्तर इस कदर बढ़ रहा है कि लोगों को नई तरह की बीमारियों ने घेर लिया है। इसी क्रम में समुद्री जीव-जंतु खत्म हो रहे हैं और समुद्र में जीवन रहित क्षेत्र बढ़ रहा है।


25 सालों में आबादी 35 फीसदी बढ़ी

1992 में यूनियन ऑफ कंसन्र्ड साइंटिस्ट्स के 1,700 वैज्ञानिकों ने चेतावनी देते हुए पहला पत्र जारी किया था। उस दौरान पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले सभी प्रमुख कारणों का जिक्र करते हुए बचाव के उपाय बताए गए थे। साथ ही बढ़ती आबादी को भी एक बड़ा खतरा बताया गया था। बावजूद इसके पिछले 25 सालों में जनसंख्या 35 फीसदी बढ़ गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह बढ़ती आबादी पर्यावरण और जीवन के लिए अच्छा संकेत नहीं है। इसके चलते जनसंख्या और खाद्यान्न में असंतुलन बढ़ेगा। 

वैज्ञानिकों ने कहा...बचना है तो ध्यान दें...

बहरहाल, अपनी इस रिपोर्ट के साथ ही एक बार फिर वैज्ञानिकों ने दुनिया को बचाने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं। इनकी मदद से जहां हम अपने पर्यावरण को रहने लायक बना सकते हैं, वहीं मानव जीवन को भी बचा सकते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक हमें जनसंख्या वृद्धि रोकने के उपाय करने ही होंगे। इसके साथ ही शाकाहार को बढ़ावा देना होगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया को अब नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर देना होगा, ताकि जीवाश्म ईंधन का प्रयोग घटाया जा सके। इतना ही नहीं प्रकृति व पर्यावरण संरक्षण के लिए एक निश्चित भूभाग निर्धारित करना होगा।

Todays Beets: