नई दिल्ली। भारत में आज पत्तल और दोनों का प्रचलन भले ही खत्म हो गया हो लेकिन पर्यावरण के अनुकूल होने के कारण विदेशों में इसकी मांग बढ़ती जा रही है। बढ़ती मांग के कारण विदेशों में इसे बनाने के साथ भारत से भी मंगाया जा रहा है। आपको बता दें कि बदलते लाइफ स्टाइल के चलते भारत में इसका इस्तेमाल कुछ कर्मकांडों तक ही सीमित होकर रह गया है।
पर्यावरण के अनुकूल
गौरतलब है कि भारत से बड़ी संख्या में छात्र यहां से विदेश शिक्षा हासिल करने जाते हैं। वहां जाने की वजह से वे देश की संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। वहीं इकोफ्रेंडली होने के कारण विदेशों में इसे हाथों-हाथ लिया जा रहा है। आसानी से डिस्पोज होने वाले इन ईको-फ्रेंडली दोने-पत्तलों का चलन यूरोपीय देशों में तेजी से बढ़ा है। जर्मनी में तो पत्तलों को ‘नेचुरल लीफ प्लेट्स’ कहकर इनका भरपूर उत्पादन हो रहा है। प्रदूषण के प्रति सजग लोगों ने तो इसका इस्तेमाल अपने रेस्त्रां में भी करने लगे हैं। यह प्रथा इसलिए अपनाई जा रही है क्योंकि डिस्पोजेबल बर्तन स्वास्थ्य तथा पर्यावरण दोनों के लिए हानिकारक हैं। वहीं थर्मोकोल-प्लास्टिक डिस्पोजेबल के इस्तेमाल से प्रकृति को भारी नुकसान होता है लेकिन प्राकृतिक पत्तल कुछ ही दिन में गल जाते हैं। पत्तल के इस्तेमाल से भोजन का स्वाद भी बढ़ जाता है। एक अंतर्राष्ट्रीय स्टार्टअप कंपनी लीफ रिपब्लिक ने इनका प्रचार और प्रोडक्शन शुरू किया है तो वहीं यूरोप के बडे़ होटलों ने भारत से दोने-पत्तलों का आयात शुरू किया है।
दोनों और पत्तलों के अनगिनत फायदे
यूरोप के कुछ बड़े होटलों में नए क्रेज की शुरुआत के चलते डिकंपोज होने वाले पत्तलों का ट्रेंड बढ़ा है। आपको बता दें कि पत्तल पर्यावरण को कई तरह से लाभ पहुंचाते हैं। खाने के बाद पत्तलों को धोना नहीं पड़ता, इन्हें सीधे मिट्टी में दबा सकते हैं। इनसे अपने-आप जैविक खाद का निर्माण हो जाता है।
तेजी से बढ़ी मांग
यूरोपीय देशों में पर्यावरण और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की वजह से पत्तियों तथा पौधों के अंशों से तैयार बर्तनों की काफी मांग है। आज आलम यह है कि भारत के कारोबारी उनकी मांगों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। यह जर्मन कंपनी जो प्लेट्स बना रही हैं वो तीन परतों में बनती हैं। इनमें ऊपरी और निचली परत पत्तों की होती है। बीच की परत का मैटेरियल गत्ते जैसा होता है। इससे बनने वाली प्लेट वाटरपू्रफ होने के साथ ही माइक्रोवेव में भी उपयोग लाई जा सकती है। इन्हें एक साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है। यूज होने के बाद इन्हें कहीं भी डिकंपोज होने के लिए डाल दिया जाता है और एक महीने में ही ये गलकर डिकंपोज हो जाते हैं।