गुलाबी रंग को हमेशा लड़कियों से जोड़ा जाता है और कहा जाता है पिंक लड़कियों का कलर है। अगर पुरुष इस रंग का इस्तेमाल भी करते हैं तो वह सभी के बीच थोड़ा-सा असहज महसूस करते हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर यह तय किसने किया कि गुलाबी लड़कियों का रंग और नीला लड़कों का। आइए जानते है इसके बारे में...
दरअसल, लड़कियों के लिए पिंक परेफक्ट कलर है वाली सोच शुरू हुए अभी लगभग 100 साल ही हुए हैं। इससे पहले के इतिहास के मुताबिक, पिंक कलर पुरुषत्व का प्रतीक रहा है। जिसका बड़ा कारण है गुलाबी रंग से ही लाल रंग का बनना और लाल रंग हमेशा रक्त, युद्ध और ताकत का प्रतीक होता है। अगर हम इतिहास की झलक देखेंगे तो पाएंगे कि पुराने रोमन सैनिकों के हेल्मेट पर भी लाल या गुलाबी रंग की ही कलगी लगी होती है।
सन् 1749 की किताब 'ए जर्नी थ्रू माय रूम' में इस बात का जिक्र किया गया है कि पुरुषों के कमरे में गुलाबी रंग ज्यादा होना चाहिए क्योंकि ये लाल रंग से जुड़ा हुआ है और इससे पुरुषों का उत्साह बढ़ता है।
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युद्ध का पड़ा प्रभावशाली प्रभाव
हमारी संस्कृति के विकसित होने में युद्धों का बहुत प्रभावशाली रूप से असर हुआ है। लड़कियों के गुलाबी और लड़कों का रंग नीला होने में भी युद्धों का ही बड़ा हाथ है। जानकारी के मुताबिक प्रथम विश्वयुद्ध के आसपास एक साथ ऐसी घटना हुई थी। जिसमें समाज की यह स्टीरियोटाइप तय किए गए। प्रथम विश्वयुद्ध के समय कई नए रोजगार बने थे। जिनमें नर्स , वेटर, सेक्रेटरी और टायपिस्ट जैसी नौकरियां शामिल है। ये नौकरियां पढ़े लिखे समाज की व्हाइट कॉलर जॉब्स का दर्जा नहीं पा सकती थी, लेकिन इन्हें मजदूरों वाली जॉब ब्लू कॉलर का भी दर्जे में भी नहीं रखा जा सकता था। इसलिए इन्हें पिंक कॉलर जॉब्स का दर्जा दिया गया। पिंक कॉलर जॉब्स की खासयित ये थी कि इनमें तरक्की की एक तय सीमा हो सकती थी। इसलिए इन्हें महिलाप्रधान माना गया। इसी दौर में गुलाबी रंग को महिला के लिए तय कर दिया गया। नॉवल 'द ग्रेट गैट्बसी' में नायक से एक आदमी कहता है कि कोई भी खानदानी अमीर गुलाबी सूट नहीं पहनता है। इस बात को नॉवल में लड़के या लड़की से नहीं बल्कि अमीर और छोटी नौकरी करने से है।
इस दौर के बीच में एक और नई बात सामने आई है। नए पैदा हुए बच्चों के लिए अस्पतालों में लड़कियों के लिए गुलाबी और लड़कों के लिए नीले कपड़े प्रयोग होने लगे। इसके पीछे की व्यवहारिक वजह थी। सफेद कपड़ों में नवजात बच्चों को दूर से देखकर लड़के लड़की का अंतर करना मुश्किल होता था।
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दूसरे विश्वयुद्ध ने तय किया
सन् 1950 के दशक ने ये तय कर दिया कि पिंक कलर लड़कियो का ब्लू कलर लड़कों का है। इसके पीछे का कारण था पश्चिम समाज में विधवाओं का काला रंग पहनना। युद्ध में पीड़ित समाज के पारपंरिक रुप से काले कपड़े पहने वाली महिला का अर्थ निकाला कि उसका पति उसके साथ नहीं है और कई पुरुष इसे नए रिश्ते का इशारा भी मानते थे। इसी तरह नीले रंग को जीन्स से जोड़कर पुरुषों की मर्दानगी की पहचान बना दिया गया। इसी के बाद से समाज ने यह स्टीरियोटाइप तय कर दिया की नीला रंग लड़कों और गुलाबी रंग लड़कियों के लिए है। तभी से बाजार में लड़कियों की चीजें पिंक कलर और लड़कों की चीजें ब्लू कलर की आनी शुरू हो गई।