नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा के स्पीकर द्वारा दो युवकों को एक माह कारावास की सजा सुनाने के फैसले के खिलाफ लगाई गई याचिका के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि आखिर युवकों को भगत सिंह का तरीका अपनाने की जरूरत क्यों पड़ी। क्यों उन्हें नहीं लगता कि वह एक आजाद देश में रह रहे हैं। आपको लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की जरूरत क्यों पड़ी। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति नजमी वजीरी की खंडपीठ ने दिल्ली सरकार पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि याचिका में यह नहीं बताया जाता है कि किस नियम के तहत वह दोनों युवकों की सजा के फैसलो को चुनौती दे रहे हैं। उनके समक्ष बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को लगाया गया है।
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यह याचिका तब लगाई जाती है, जब पुलिस व राज्य सरकार द्वारा किसी शख्स को अवैध रूप से गिरफ्तार किया जाता है। याचिका के माध्यम से गिरफ्तार शख्स को हाईकोर्ट में पेश किया जाता है। इसके बाद अदालत इस बात का निर्णय लेती है कि गिरफ्तारी ठीक है या नहीं। अगर ऐसा है तो यह बेहद गंभीर मामला हो जाता है।
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हाई कोर्ट ने कहा कि अगर इस याचिका में विधानसभा के स्पीकार के अधिकारों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है तो इस तरह के मामलों के लिए नियुक्त संबंधित जजों की खंडपीठ के पास इस मामले को भेजा जाएगा।
बता दें कि दोनों युवकों ने दिल्ली विधानसभा में सत्र के दौरान विजिटर गैलरी से नीचे पर्चे फेंकते हुए स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन को तुरंत हटाए जाने के नारे लगाए थे।
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