देहरादून। स्वास्थ्य सेवा में बेहतरी लाने के सरकारी प्रयासों को केन्द्र सरकार की तरफ से जोर का झटका लगा है। राज्य सरकार के द्वारा श्रीनगर मेडिकल काॅलेज और अल्मोड़ा में बन रहे मेडिकल काॅलेज को सेना के हवाले करने के फैसले को रक्षा मंत्रालय ने मना कर दिया है। मंत्रालय ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को पत्र लिखकर कहा है कि सशस्त्र सेना चिकित्सा सेवा उक्त मेडिकल कॉलेजों के प्रबंधन का भार उठाने में सक्षम नहीं है।
सेनाध्यक्ष से मुलाकात में बनी सहमति
गौरतलब है कि राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने और सरकारी मेडिकल काॅलेजों पर आने वाले खर्च को कम करने के मकसद से राज्य सरकार ने राजकीय मेडिकल काॅलेज श्रीनगर और अल्मोड़ा को सेना के हवाले करने का फैसला लिया था। वीरचंद्र सिंह गढ़वाली राजकीय आयुर्विज्ञान एवं शोध संस्थान श्रीनगर को संचालित करने को लेकर सेना के साथ सहमति भी बन गई थी। इतना ही नहीं राज्य में डाॅक्टरों की कमी को पूरा करने के लिए सेना से सेवानिवृत्त हुए विशेषज्ञ डाॅक्टरों को यहां तैनात किए जाने को लेकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और थल सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत के बीच हुई मुलाकात में निर्णय लिया गया था।
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अरुण जेटली ने किया मना
यहां बता दें कि अभी प्रदेश के अस्पतालों का संचालन सरकार के लिए काफी महंगा साबित हो रहा है। सिर्फ श्रीनगर मेडिकल काॅलेज का सालाना खर्च 54 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। अगर इस अस्पताल का संचालन सेना करती तो राज्य को बड़ी राहत मिल सकती थी। मुख्यमंत्री द्वारा अप्रैल में तत्कालीन रक्षा मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखकर दोनों अस्पतालों का संचालन सेना को देने का अनुरोध किया था लेकिन जेटली ने मुख्यमंत्री के अनुरोध के जवाब में दोनों मेडिकल कॉलेजों के संचालन में असमर्थता जता दी। रक्षा मंत्रालय द्वारा मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में खेद जताते हुए कहा गया कि सशस्त्र सेना चिकित्सा सेवा राज्य के दोनों मेडिकल कॉलेजों के प्रबंधन का अतिरिक्त भार वहन करने और प्राध्यापक एवं कर्मचारी प्रदान करने में सक्षम नहीं है। रक्षा मंत्रालय के इस कदम से राज्य सरकार सकते में है।