चमोली। उत्तराखंड के चमोली में हुई तेज बारिश के बाद नीति घाटी ग्लेशियर के टूटने से कृत्रिम झील का निर्माण हो गया है। इस झील में लगातार पानी के जमा होने से पहाड़ के नीसे बसे गांवों में बाढ़ आने का खतरा मंडराने लगा है। झील बनने की पूरी रिपोर्ट उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) ने राज्य के आपदा न्यूनीकरण केंद्र को दे दी है। यूसैक ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है और कहा कि पानी नहीं निकालने से काफी नुकसान हो सकता है।
गौरतलब है कि वाडिया संस्थान ही ऐसी झीलों या ग्लेशियरों की नापजोख करता है। ऐसे में यूसैक की रिपोर्ट के बाद सरकार संस्थान से इसकी भी माप करने का अनुरोध करेगी। यहां बता दें कि केदारनाथ आपदा भी चौराबाड़ी में बनी बड़ी झील के टूटने के कारण ही आई थी। इस भीषण त्रासदी में साढ़े 4 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और निचली घाटियों में भारी नुकसान हुआ था।
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यहां गौर करने वाली बात है कि वैज्ञानिकों का मानना है बर्फ के पिघलने की वजह से कई बार पानी का प्रवाह रुक जाता है और झील का निर्माण हो जाता है। यूसैक निदेशक निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट ने बताया कि रायकांडा और पश्चिमी कामेट ग्लेशियर में जहां पर यह झील बनी है, वहां से अलकनंदा की मुख्य सहायक नदी धौली गंगा निकलती है। उन्होंने बताया कि सबसे पहले साल 2001 में झील का निर्माण हुआ था।
-वैज्ञानिकों का मानना है कि झील से संभावित खतरे को टालने के लिए उनका एक दल तत्काल मौके पर जाए।
-ग्लेशियर टूटने से बचाए नहीं जा सकते लेकिन ऐसी घटनाओं से सचेत करने का तंत्र मुस्तैद किया जाना चाहिए।
-सरकार को चाहिए कि हिमालय से निकलने वाली नदियों के किनारे आबादी को बसने से रोके।