देहरादून। राज्य की जैव विविधता का व्यापारिक इस्तेमाल करने वाली कंपनियां अब स्थानीय लोगों के अधिकारांे का हनन नहीं कर पाएंगी। हरिद्वार की दिव्य फार्मेसी मामले में हाईकोर्ट के फैसले के बाद जैव विविधता बोर्ड हरकत में आ गया है। अब बोर्ड के दायरे से बाहर कंपनियों को एक्ट के अधीन लाकर एग्रीमेंट कराए जाएंगे। इसके तहत कंपनियों को अपने मुनाफे का आधे से 5 फीसदी तक का हिस्सा स्थानीय लोगों के लिए देना होगा। ऐसा न करने पर 5 साल की जेल और 10 लाख रुपये तक जुर्माना भी देना पड़ सकता है।
गौरतलब है कि उत्तराखंड के पहाडों में औषधीय जड़ी-बूटियों की भरमार है। ऐसे में कई कंपनियां उसका बेतहाशा दोहन करती हैं लेकिन स्थानीय लोगों को इसके बदले में कुछ भी नहीं मिल पाता है। अब सरकार की ओर प्रदेश की जैव विविधता का कारोबारी इस्तेमाल करने वाली कंपनियों को एक्ट के तहत लाया जाएगा और उन्हीं के तहत स्थानीय लोगों को भी इसमें हिस्सा दिया जाएगा।
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यहां बता दें कि जैव विविधता बोर्ड ने जैव विविधता एक्ट के तहत दिव्य फार्मेसी कंपनी को जैविक संसाधनों से हुए मुनाफे में किसानों और स्थानीय लोगों को अंश देने का आदेश दिया था। बोर्ड के इस आदेश के खिलाफ कंपनी हाईकोर्ट में चली गई लेकिन हाईकोर्ट ने बोर्ड के आदेश को सही मानते हुए कंपनी की अपील को खारिज कर दिया था।
गौर करने वाली बात है कि फिलहाल 600 कंपनियां जैव विविधता एक्ट के तहत आती हैं लेकिन सिर्फ 30 ने ही एग्रीमेंट किया है। जैव संपदा के कारोबार से जुड़ी सभी कंपनियों को बोर्ड के साथ एग्रीमेंट कराने के निर्देश दिए गए हैं। आपको बता दें कि प्रदेश में उगने वाली जड़ी-बूटी, बीज, वनस्पतियों को दवा बनाने वाली कंपनियां इस्तेमाल करती हैं। राज्य की इस जैव संपदा की रक्षा और संरक्षण के लिए जैव विविधता बोर्ड ने शुल्क तय किया है।