पौड़ी । प्रसिद्ध पर्यावरणविद् पद्म विभूषण चंडी प्रसाद भट्ट ने केंद्र और राज्य की सरकारों को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर पृथ्वी पर कोई सबसे संवेदनशील क्षेत्र है तो उसे हिमालयी क्षेत्र कहा जाता है। इस क्षेत्र में बिना किसी ठोस प्रबंधन के विकास कार्य को आगे बढ़ाना हमारे लिए घातक सिद्ध होगा । उन्होंने कहा कि अगम हम समय रहने नहीं चेते तो हमें आने वाले समय में केदारनाथ से भी बड़ी त्रासदी का सामना करना पड़ सकता है । उन्होंने कहा- सरकार को वन संरक्षण में ग्रामीणों का सहयोग चाहिए, लेकिन वह ग्रामीणों को अधिकार नहीं देना चाहती । इससे हिमालयी क्षेत्र की पारिस्थितिकी में असंतुलन की स्थिति पैदा हो गई है। वह गढ़वाल विश्व विद्यालय के पौड़ी परिसर में भूगोल विभाग की ओर से 'हिमालय, पर्यावरण एवं विकास' विषय पर दो-दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में बोल रहे थे । सेमीनार के पहले विभिन्न राज्यों से आए विषय विशेषज्ञों ने पर्यावरण की अनदेखी से पैदा होते हालात और संरक्षण के लिए सभी का आगे आने का आह्वान किया। कहा कि सरकारों को भी इसके लिए प्रभावी कार्ययोजना बनानी होगी।
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पद्म विभूषण चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि देश में विकास के लिए जल विद्युत परियोजनाओं का निर्माण जरूरी है, लेकिन इसके लिए पर्यावरणीय दृष्टिकोण को भी अपनाया जाना चाहिए। जिस प्रकार पहाड़ी क्षेत्रों में पर्यावरण की अनदेखी कर निर्माण कार्य हो रहे हैं, वह गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने कहा - पर्यावरण को ग्लोबल वार्मिंग से ज्यादा खतरा आज लोकल वार्मिंग से पैदा हो गया है। भट्ट ने चेतावनी वाले लहजे में कहा कि अगर हिमालय में गड़बड़ी हुई तो पूरे देश को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
सेमिनार में बतौर मुख्य वक्ता उन्होंने कहा - पौड़ी से हिमालय का विहंगम दृश्य आलौकिक करने वाला है, लेकिन पौड़ी को विश्व मानचित्र पर नहीं उकेर पाना हमारी नाकामी को दर्शा रहा है। भट्ट ने कहा कि पहले ग्रामीण जंगल से जुड़े रहते थे, वर्तमान में सरकार ने ग्रामीणों को जंगल से जुदा कर दिया है। उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरण एवं विकास में संतुलन होना आवश्यक है।
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वहीं मैती आंदोलन के प्रणेता कल्याण सिंह रावत ने कहा कि हिमालय क्षेत्र की पारिस्थितिकी से छेड़छाड़ हो रही है, जो हमें अनेक प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से सामना करा रहा है। वह बोले - पहाड़ में पहले बाघ और भालू का भय होता था, लेकिन अब भूस्खलन खौफ पैदा कर रहा है। पर्यावरण मानकों की अनदेखी कर पहाड़ी क्षेत्रों में विकास को मूर्तरूप देना काफी खतरनाक है।