Tuesday, April 23, 2024

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शक्तिमान प्रकरण का मुकदमा वापस लेने पर राजनीति तेज, पशु संरक्षक संस्था भी उठा रहे सवाल

अंग्वाल न्यूज डेस्क
शक्तिमान प्रकरण का मुकदमा वापस लेने पर राजनीति तेज, पशु संरक्षक संस्था भी उठा रहे सवाल

देहरादून। उत्तराखंड में पिछले साल हुए बहुचर्चित शक्तिमान प्रकरण का मुकदमा वापस लेने से सरकार के खिलाफ विरोध के स्वर उठने लगे हैं। विपक्षी पार्टी कांग्रेस के साथ पशु कल्याण से जुड़ी संस्थाओं ने सरकार से सवाल पूछा है कि मुकदमा वापस लेने का क्या मतलब है। बता दें कि कांग्रेस की तत्कालीन हरीश रावत सरकार के खिलाफ विधानसभा कूच के दौरान शक्तिमान घोड़े की टांग टूट गई थी। मीडिया में घोड़े पर डंडों से वार करने का वीडियो और फोटो वायरल होने के बाद मसूरी  के विधायक गणेश जोशी के खिलाफ पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया था।

मुकदमा वापसी पर सवाल

गौरतलब है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के उत्तराखंड दौरे के बाद शक्तिमान प्रकरण में गणेश जोशी के खिलाफ दर्ज मुकदमा वापस ले लिया गया है। सरकार के इस फैसले के बाद विपक्षी पार्टी कांग्रेस के साथ-साथ एनिमल वेलफेयर से जुड़ी संस्थाओं ने सरकार को आड़े हाथों लिया है। कांग्रेस ने कहा कि आमतौर पर जनहित से जुड़े मुकदमे वापस लिए जाते हैं लेकिन इस प्रकरण में कौन सा जनहित जुड़ा है। सरकार को इस बात का जवाब देना होगा। कांग्रेस के महानगर अध्यक्ष पृथ्वी राज चैहान ने कहा कि यह अवमानीय घटना थी और इसके दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए थी, लेकिन सरकार ही ऐसे अमानवीय लोगों को संरक्षण देकर मुकदमा वापस कर रही है। जनता समय आने पर इसका जवाब देगी।

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ये था मामला

आपको बता दें कि पिछले साल हरीश रावत के शासन खिलाफ विधानसभा कूच के दौरान शक्तिमान घोड़े की टांग टूट गई थी और डंडों से घोड़े पर वार करने की तस्वीर मीडिया में वायरल होने के बाद मसूरी से भाजपा के विधायक गणेश जोशी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। जोशी को पांच दिन जेल में काटने पड़े थे। वर्ष 2016 में घटना के चार दिन बाद 18 मार्च को पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था। देहरादून में विधायक की गिरफ्तारी से बवाल की आशंका को देखते हुए उन्हें विकासनगर कोर्ट में पेश करने के बाद सीधे सुद्धोवाला जेल भेज दिया गया था। 5 दिनों के बाद 22 मार्च 2016 को उन्हें जिला सत्र न्यायालय से सर्शत जमानत मिली थी। अब मुकदमा वापस लिए जाने के बाद प्रदेश में राजनीति तेज हो गई है। पशु संरक्षक संस्थाओं का कहना है कि जब कानून बनाने वाले ही कानून तोड़ने लगेंगे तो न्याय की उम्मीद कहां से की जा सकेगी। 

 

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