देहरादून। राज्य से विलुप्त होते फर्न प्रजाति के पौधों के संरक्षण के लिए वन विभाग ने एक बड़ा कदम उठाया है। अब इसके लिए नैनीताल के गाजा और अल्मोड़ा जिले के कलिका इलाके में पहली बार ‘फर्नेटम’ तैयार किया जा रहा है। इसमें फर्न की 12 प्रजातियों के करीब 2200 पौधे लगाए जाएंगे। इस प्रजाति के बचाव का खाका नैनीताल वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने तैयार किया है। उनका मानना है कि पांच सालों के अंदर यह योजना पूरी तरह से तैयार हो जाएगा। फर्न का पौधा जमीन में नाइट्रोजन की कमी को भी पूरा करता है।
औषधीय पौधा
गौरतलब है कि फर्न एक विलुप्त होती वनस्पति है। इसके महत्व के बारे में बताते हुए संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि फर्न एक औषधीय पौधा है और इसका इस्तेमाल यूनानी दवाओं में किया जाता है। इसे हंसराज और मयूरशिखा नामों से भी जाना जाता है। बता दें कि फर्न एक पुष्पविहीन पौधा है, जो टोरिडोफाइटा परिवार से संबंधित है। इसे भी अन्य वनस्पतियों की भांति जड़, तना और पत्ती तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है। यह पौधा प्राकृतिक रूप से उगते हैं।
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कैंपा कर रहा मदद
आपको बता दें कि फर्न के पौधों का इस्तेमाल न सिर्फ दवाओं के लिए बल्कि इसकी कुछ प्रजातियों का उपयोग भोजन और सजावट में भी किया जाता है। ऐसे में इस पौधे के लगातार दोहन से इस पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके इस पौधे को बचाने के लिए वन महकमे के अनुसंधान वृत्त के वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने राज्य के मध्य हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली फर्न के संरक्षण-संवर्धन की योजना बनाई। यह योजना क्षतिपूरक वनीकरण प्रबंधन अभिकरण (कैंपा) की मदद से तैयार किया जा रहा है। नैनीताल और अल्मोड़ा में फर्न की 12 प्रजातियों का रोपण किया जा रहा है।
बेहद उपयोगी है फर्न
वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी बताते हैं कि फर्न बेहद उपयोगी है। यह जमीन में नाइट्रोजन की कमी को तो पूरा करता ही है साथ ही आर्सेनिक जैसी घातक धातुओं को हटाकर भूमि की उर्वरता बढ़ाने में बड़ा सहायक है।