देहरादून। उत्तराखंड फुटबाॅल टीम को मैच में हारना काफी महंगा पड़ा। ग्रेटर नोएडा में संतोष ट्राॅफी प्रतियोगिता से क्वालिफाइंग दौर में ही बाहर होने के बाद प्रबंधन ने खिलाड़ियों के ट्रैकसूट और किट तक उतरवा कर रख लिया। प्रबंधन ने खिलाड़ियों को घर वापस जाने के लिए टिकट तक नहीं दिया गया। उत्तराखंड फुटबाल एसोसिएशन के सचिव अख्तर अली ने ट्रैकसूट रखवा जाने की पुष्टि करते हुए बताया कि प्रतियोगिता में राज्य की महिला टीम को भी प्रतिभाग करना है इस वजह से पुरुष टीम से ट्रैकसूट और किट वापस लेने पड़े हैं।
क्वालिफाईंग मुकाबले में खराब प्रदर्शन
गौरतलब है कि ग्रेटर नोएडा स्थित शारदा यूनिवर्सिटी में 16 जनवरी से संतोष ट्राफी नार्थ जोन के मुकाबले चल रहे हैं। उत्तराखंड की फुटबाल टीम भी इसमें भाग लेने गई थी। प्रदेश की टीम ने क्वालिफाइंग राउंड तक तीन मुकाबले खेले, इसमें हरियाणा और चंडीगढ़ के हाथों टीम को हार का सामना करना पड़ा जबकि यूपी को टीम ने 2-0 से शिकस्त दी थी लेकिन ओवरऑल रैंकिंग में पिछड़ने के चलते टीम क्वालिफाइंग राउंड से ही बाहर हो गई। टीम के प्रदर्शन से नाराज प्रबंधकों ने उनके ट्रैकसूट और किट तक उतरवा कर रख लिए। प्रबंधन ने खिलाड़ियों को वापस आने के लिए टिकट देने से मना कर दिया, यहां बता दें कि उत्तराखंड की टीम में अकेले देहरादून के 7 खिलाड़ी शामिल हैं। खिलाड़ियों को जैसे तैसे अपने इंतजाम से अपने अपने घरों को लौटना पड़ा।
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एसोसिएशन की दलील
यहां बता दें कि उत्तराखंड फुटबाॅल एसोसिएशन के सचिव अख्तर अली ने ट्रैकसूट रखवा जाने की पुष्टि करते हुए बताया कि प्रतियोगिता में राज्य की महिला टीम को भी प्रतिभाग करना है इस वजह से पुरुष टीम से ट्रैकसूट और किट वापस लेने पड़े हैं। वहीं दूसरी तरफ खिलाड़ियों को वापसी के टिकट ना दिए जाने के सवाल पर उन्होंने बताया कि प्रबंधन ने सभी खिलाड़ियों के लिए हल्द्वानी तक आने-जाने के टिकट एडवांस में बुक कराए थे लेकिन प्रतियोगिता के बाद खिलाड़ी हल्द्वानी के बजाय अपने-अपने घर जाने की मांग करने लगे, इस कारण उनके लिए हल्द्वानी का टिकट अनुपयोगी हो गया। इसके चलते खिलाड़ियों को उनके गंतव्य का टिकट देना संभव नहीं हो पाया।
किसी कोच के पास लाईसेंस नहीं
यहां गौर करने वाली बात है कि प्रतियोगिता के पहले ही मैच में उत्तराखंड की टीम को हरियाणा के खिलाफ बिना कोच के ही मैदान में उतरना पड़ा था क्यों कि उत्तराखंड के कोच के पास बी लाइसेंस नहीं था। तब फुटबाल एसोसिएशन ने सफाई दी थी कि उत्तराखंड में किसी भी कोच के पास बी लाइसेंस नहीं है।