देहरादून। उत्तराखंड में जबरन किसी का धर्म परिवर्तन कराना अब महंगा पड़ सकता है। त्रिवेन्द्र रावत कैबिनेट ने धर्म स्वतंत्रता एक्ट की नियमावली पर मुहर लगा दी है। अब ऐसा करने वाली संस्था और व्यक्ति लिप्त पाया जाता है कि तो उसे दंडित करने के साथ ही संस्था का पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा। धर्म परिवर्तन के मामले में आरोपित व्यक्ति को दोषमुक्त साबित करने के लिए खुद प्रमाण देने होंगे। विवाह के बाद धर्म परिवर्तन के मामले में भी जिलाधिकारी के स्तर पर जांच कर अदालत को जानकारी देने का प्रावधान नियमावली में किया गया है।
गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार ने गैरसैंण विधानसभा सत्र में ही उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता विधेयक को पारित कराने के बाद उसे एक्ट की शक्ल दी थी। बुधवार की शाम उस पर अंतिम मुहर लगा दी गई। पत्रकारों से बात करते हुए कैबिनेट मंत्री प्रकाश पंत ने बताया कि धर्म स्वतंत्रता एक्ट की नियमावली बनने के बाद इसका क्रियान्वयन सुनिश्चित हो जाएगा। मंत्री ने कहा कि धर्म परिवर्तन करने के इच्छुक लोगों को पहले अपने स्थायी निवास स्थल क्षेत्र के जिला मजिस्ट्रेट को सूचना देनी होगी। जिला मजिस्ट्रेट ऐसी सूचनाओं की 15 दिन के भीतर जांच कराएगा।
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यहां बता दें कि कैबिनेट ने इस बात का भी फैसला लिया गया कि सिर्फ विवाह के मकसद से धर्म परिवर्तन को अमान्य माना जाएगा। धर्म परिवर्तन के लिए जिला मजिस्ट्रेट या कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष एक महीने पहले शपथपत्र देना होगा। धर्म परिवर्तन के लिए समारोह की भी सूचना पहले देनी होगी। धर्म स्वतंत्रता कानून का उल्लंघन होने करने पर 3 महीने से लेकर 1 साल तक की सजा हो सकती है।
गौर करने वाली बात है कि अनुसूचित जाति-जनजाति के मामले में यह सजा 6 माह से 2 साल होगी। धर्म परिवर्तन के लिए अगर किसी तरह का लेन-देन का मामला सामने आता है तो उस राशि को जब्त कर लिया जाएगा। जबरन धर्म परिवर्तन कराने वाले व्यक्ति और संस्था दोनों को ही दंडित किया जाएगा साथ ही जेल भी भेजा जा सकता है।