देहरादून। उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग विकराल रूप लेती जा रही है। राज्य के ज्यादातर हिस्सों में फैली यह आग अब रिहाइशी इलाकों तक पहुंचती जा रही है। आग के चलते फैले धुएं से लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो रही है। अब तक करोड़ों रुपये का नुकसान होने के साथ कई जंगली जानवरों के भी मरने की आशंका जताई जा रही है। आग पर काबू पाने में वन विभाग की टीम पूरी तरह से नाकाम रही है। दुनिया में जंगलों में लगी आग पर काबू पाने के लिए आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन उत्तराखंड में अभी भी झांपा (हरी टहनियों को तोड़कर बनाया जाने वाला झाड़ू) का इस्तेमाल किया जा रहा है। शाम के समय चलने वाली तेज हवाओं की वजह से आग और भी विकराल रूप लेता जा रहा है।
गौरतलब है कि प्रदेश के गढ़वाल और कुमाऊं दोनों मंडलों में भीषण आग लगी हुई है। श्रीनगर, अल्मोड़ा, चंपावत, हरिद्वार और मसूरी के जंगलों में लगी आग रिहाइशी इलाकों तक पहुंचने लगी है। मसूरी के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल ‘कैम्पटी फाॅल’ के पास तक आग की लपटें पहुंचने से सैलानियों को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। वहीं सबसे पसंदीदा पर्यटक स्थल नैनीताल में भी लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है। वहीं वन विभाग के कर्मचारियों का कहना है कि आग पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है। जंगलों में लगी आग के चलते वन विभाग के सभी कर्मचारियों की छुट्टियों को रद्द कर दिया गया है।
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यहां गौर करने वाली बात है कि प्रदेश में हर साल ही फायर सीजन, यानी 15 फरवरी से 15 जून तक जंगलों में आग लगने की घटनाएं ज्यादा होती हैं। इस सबको देखते हुए आग पर काबू पाने के लिए आधुनिक संसाधनों की बात अक्सर होती रहती है लेकिन इस दिशा में अभी तक कोई ठोस पहल नहीं हो पाई है। हालांकि, मैदानी क्षेत्रों के लिए तो कुछ उपकरण जरूर मंगाए गए हैं लेकिन विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते पर्वतीय क्षेत्रों में यह कारगर साबित नहीं हो पा रहे। ऐसे में वहां आज भी परंपरागत तरीके से झांपे के जरिए ही जंगलों की आग बुझाई जा रही है।