Saturday, April 20, 2024

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उत्तराखंड के इस महान सपूत को गूगल ने डूडल बनाकर दी श्रद्धांजलि, जानें कौन हैं ये शख्स 

अंग्वाल न्यूज डेस्क
उत्तराखंड के इस महान सपूत को गूगल ने डूडल बनाकर दी श्रद्धांजलि, जानें कौन हैं ये शख्स 

नई दिल्ली/ देहरादून। हर खास मौकों पर दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल के द्वारा डूडल बनाकर विशेष लोगों को श्रद्धांजलि दी जाती है। इस बार गूगल ने उत्तराखंड के सपूत नैन सिंह रावत को उनके 187वें  जन्म दिन पर अनोखी श्रद्धांजलि दी है। गूगल ने उनका डूडल बनाया है। बता दें कि नैन सिंह रावत पहले ऐसे भारतीय थे जिन्होंने बिना किसी आधुनिक उपकरण के इस्तेमाल से पूरे तिब्बत का नक्शा तैयार किया था।

 

गौरतलब है कि शनिवार की सुबह गूगल डूडल ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा। पहाड़ों पर खड़ा यह शख्स उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले नैन सिंह रावत है। नैन सिंह रावत ने उस समय पूरे तिब्बत का नक्शा बिना किसी उपकरण के तैयार किया गया था। उन दिनों तिब्बत में विदेशियों के आने की मनाही थी और चोरी छिपे आने वालों के पकड़ में आने पर उन्हें मौत की सजा दी जाती थी। 

एक्सप्लोरर नैन सिंह रावत के बारे में खास बातें

- 19वीं शताब्दी में अंग्रेज भारत का नक्शा तैयार कर रहे थे और वे लगभग पूरे भारत का नक्शा बना चुके थे। वे आगे बढ़ते हुए तिब्बत का नक्शा चाहते थे, लेकिन फॉरबिडन लैंड कहे जाने वाली इस जगह पर किसी भी विदेशी के जाने पर मनाही थी। ऐसे में किसी भारतीय को ही वहां भेजने की योजना बनाई गई और इसके ऐसे भारतीय की खोज शुरू की गई जो वहां का नक्शा तैयार कर सके।  आखिरकार 1863 में कैप्टन माउंटगुमरी को उत्तराखंड 33 साल के पंडित नैन सिंह और उनके चचेरे भाई मानी सिंह के रूप में दो लोग मिल गए।

- इन दोनों भाइयों को ट्रेनिंग के लिए देहारदून लाया गया। यहां बता दें कि उन दिनों दिशा और दूरी की माप करने वाले यंत्र काफी बड़े होते थे ऐसे में उन्हें तिब्बत तक ले जाना काफी खतरनाक था। ऐसे में पकड़े जाने पर मौत की सजा तय थी। ऐसे में अंग्रेजी हुकुमत ने तय किया कि दिशा नापने के लिए छोटा कंपास और तापमान नापने के लिए थर्मामीटर इन भाइयों को सौंपा जाएगा।


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- दूरी नापने के लिए नैन सिंह के पैरों में 33.5 इंच की रस्सी बांधी गई ताकि उनके कदम एक निश्चित दूरी तक ही पड़ें। हिंदुओं की 108 की कंठी के बजाय उन्होंने अपेन हाथों में जो माला पकड़ी वह 100 मनकों की थी ताकि गिनती आसान हो सके। नैन सिंह के भाई मनी सिंह अपनी यात्रा में असफल होकर लौट आए लेकिन पंडित नैन सिंह रावत ने अपनी यात्रा जारी रखी।

- नैन सिंह सफलतापूर्वक तिब्बत पहुंचे और पहचान छिपाने के लिए बौद्ध भिक्षु के रूप में वहां घुल-मिल गए। वह दिन में शहर में टहलते और रात में किसी ऊंचे स्थान से तारों की गणना करते और उन गिनतियों को वे कविता के रूप में याद रखते थे।

- नैन सिंह रावत ने ही सबसे पहले दुनिया को ये बताया कि लहासा की समुद्र तल से ऊंचाई कितनी है, उसके अक्षांश और देशांतर क्या हैं। यही नहीं उन्होंने ब्रहमपुत्र नदी के साथ लगभग 800 किलोमीटर पैदल यात्रा की और दुनिया को बताया कि स्वांग पो और ब्रह्मपुत्र एक ही नदी है। उन्होंने दुनिया को तिब्बत के कई अनदेखे और अनसुने रहस्यों के बारे में जानकारी दी। 

- पंडित नैन सिंह रावत के इस काम को ब्रिटिश राज में भी काफी सराहना मिली।  अंग्रेजी सरकार ने 1877 में बरेली के पास 3 गांवों की जागीरदारी उन्हें उपहार स्वरूप दी थी।  इसके अलावा उनके कामों को देखते हुए ‘कम्पेनियन ऑफ द इंडियन एम्पायर’ का खिताब दिया गया था। 

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