देहरादून। उत्तराखंड में पहाड़ों के विकास और पुनर्वास की योजनाएं भले ही सालों से कागजों में अटकी हों लेकिन मैदानी इलाकों के 4 विधायकों के दवाब के आगे झुकी प्रदेश सरकार को मलिन बस्तियों को बचाने के लिए अध्यादेश तक लाना पड़ा है। बताया जा रहा है कि मलिन बस्तियों को बचाने के लिए विधायक गणेश जोशी, उमेश शर्मा, खजान दास और हरबंश कपूर के दवाब के आगे झुकना पड़ा।
गौरतलब है कि पहाड़ों के करीब 350 गांव एक लंबे समय से आपदा की जद में हैं। यहां तक की सरकारी विभागों के सर्वे में इस बात को कहा गया है कि ये इलाके रहने के लिए सुरक्षित नहीं हैं लेकिन इसके बावजूद इन गांवों के पुनर्वास के लिए अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। लोगों को दिखाने के लिए औपचारिकताएं तो निभा दी गई लेकिन हकीकत में कुछ भी नहीं किया गया।
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यहां बता दें कि नीति आयोग की बैठक में पिछले कई सालों से आपदा की जद में आए गांवों के पुनर्वास का मुद्दा उठाया जा रहा है। राज्य सरकार का तर्क है कि पुनर्वास और विस्थापन के लिए करीब 10 हजार करोड़ के पैकेज की जरूरत है और हमेशा की संसाधनों की कमी का रोना रोकर इससे बचती रही है। ऐसे में अब इन गांवों की संख्या बढ़कर 400 तक पहुंच गई है।
गौर करने वाली बात है कि सरकार चाहे कोई भी रही हो सभी वोटों के चक्कर में मलिन बस्तियों पर मेहरबान रही है। पिछली हरीश रावत सरकार के समय अवैध रूप से सरकारी जमीनों पर बसी इन बस्तियों को नियमित करने का फैसला लिया गया। नियमितीकरण की कार्रवाई शुरू भी कर दी गई लेकिन सरकार बदलते ही फैसले में भी बदलाव आ गया। सरकार ने कोर्ट के आदेश के बावजूद इन पर कोई कार्रवाई नहीं की। अब अपने ही विधायकों के दवाब में सरकार को इस बस्ती को बचाने के लिए अध्यादेश तक लाना पड़ा है।