देहरादून। राज्य में रोजगार को बढ़ावा देने की पूरी कोशिश कर रही है। इसके लिए सरकार ने ‘प्रसाद’ योजना की शुरुआत की है। इस योजना के तहत चारधाम की यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को मंदिरों में स्थानीय उत्पादों से बने प्रसाद चढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। ऐसा होने से रोजगार के अवसर पैदा होने के साथ ही स्थानीय उत्पादों को भी बढ़ावा मिलेगा। ‘प्रसाद’ योजना लाॅन्च करते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने कहा कि महिला सशक्तिकरण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकल्प को पूरा करने के लिए राज्य सरकार ने मंदिरों के प्रसाद को जरिया बनाया है। उन्होंने कहा कि इससे किसानों की आय में भी इजाफा होगा।
2 महीने में 19 लाख का प्रसाद
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रसाद योजना में महिला सहायता समूहों को वरीयता दी जाएगी। सीएम ने बद्रीनाथधाम का उदाहरण देते हुए कहा कि तीन महिला स्वयं सहायता समूहों ने स्थानीय उत्पादों, मडुआ, कुट्टू व चैलाई से प्रसाद तैयार किया और स्थानीय रेशों जैसे कि बांस और रिंगाल से बनी टोकरियों में इसकी पैकेजिंग की। उन्होंने कहा कि इन महिला समूहों ने बद्रीनाथ धाम में सिर्फ 2 महीने के अंदर करीब 19 लाख रुपये का प्रसाद बेचा है। इससे उन्हें 9 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा हुआ है।
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10 हजार से ज्यादा को मिलेगा रोजगार
सरकार का मानना है कि इस योजना के तहत 6 हजार से ज्यादा महिलाओं को रोजगार मिलेगा। इसके अतिरिक्त किसान इन समूहों को कंडी बनाने को रिंगाल व अनाज उपलब्ध कराएंगे उनके लिए रोजगार का जरिया बनेगा। सीएम ने कहा कि इस योजना में हैस्को संस्था का तकनीकी सहयोग भी लिया जा रहा है। पत्रकारों के इस सवाल पर कि क्या स्थानीय प्रसाद को मंदिर में चढ़ाना अनिवार्य किया जाएगा, इस पर सीएम ने कहा कि सरकार का ऐसा कोई इरादा नहीं है। सरकार का मकसद सिर्फ स्थानीय लोगों को रोजगार मुहैया कराना है और महिला समूहों को मंदिरों के आसपास जगह उपलब्ध कराई जाएगी। बता दें कि यह प्रसाद 101 रुपये से लेकर 551 रुपये तक का होगा।
प्रयोग के तौर पर शुरुआत
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस प्रयोग की सफलता के बाद राज्य के 625 मंदिरों में स्थानीय उत्पादों से निर्मित प्रसाद बेचा जाएगा। हर वर्ष राज्य में लगभग तीन करोड़ श्रद्धालु आते हैं, इनमें से मात्र 80 लाख श्रद्धालुओं को 100-100 रुपये का प्रसाद बेचा जाए तो महिला समूहों को 80 करोड़ की आय हो सकती है। प्रसाद के मूल्य पर स्थानीय महिला स्वयं सहायता समूहों का ही नियंत्रण रहेगा।