देहरादून। राज्य सरकार द्वारा आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण दिए जाने के मामले पर हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की गई है। इस मामले की सुनवाई अगले हफ्ते होने की उम्मीद है। बता दें कि हाईकोर्ट ने आरक्षण व्यवस्था को गैरकानूनी बताते हुए रद्द कर दिया था इसके बाद सरकार ने आंदोलनकारियों को पीड़ित पक्ष बताते हुए इनकी पैरवी कर रहे वकील रमन शाह ने पुनर्विचार याचिका दायर की है। अब इस मामले की सुनवाई अगले हफ्ते होने की उम्मीद है। वहीं एलटी शिक्षकों की भर्ती मामले में हाईकोर्ट ने सरकार से 4 हफ्तों में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
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गौरतलब है कि पुनर्विचार याचिका में कहा गया है कि राज्य आंदोलनकारियों को दिया जा रहा आरक्षण केवल एक बार के लिए है। इसमें आगे यह भी कहा गया है कि राज्य आंदोलनकारी सरकार प्रायोजित प्रताड़ना के शिकार हुए हैं ऐसे में उन्हें पीड़ित पक्ष माना जाना चाहिए। याचिका में उत्तराखंड आंदोलन के दौरान हुए मुजफ्फरनगर कांड में महिलाओं से दुष्कर्म, छेड़छाड़ और हत्या की वारदात का जिक्र भी किया है। याचिकाकर्ता ने कहा कि इस मामले में अभी तक किसी को सजा भी नहीं हुई है। इन सभी बातों के मद्देनजर सरकार की तरफ से 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था की गई है। सरकार का यह कदम प्रताड़ितों को राहत और पुनर्वास के लिए उठाया गया कदम है।
यहां बता दें कि एक अन्य मामले में हाईकोर्ट ने सहायक अध्यापक (एलटी) के पदों में नियुक्ति के मामले में दायर याचिका, सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली है। न्यायमूर्ति राजीव शर्मा की एकलपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए इस मामले में सरकार को चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। गौर करने वाली बात है कि इस मामले में चमोली के रहने वाले राकेश पुरोहित ने याचिका दायर कर कहा था कि उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने सहायक अध्यापक एलटी के पदों में नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया था। 3 जनवरी 2017 को जारी विज्ञापन में नियुक्ति के लिए परीक्षा तय की थी। परीक्षा में 100-100 अंकों के दो पेपर, एक सामान्य ज्ञान और एक संबंधित विषय के होने थे लेकिन परीक्षा सिर्फ 100 अंकों की ही हुई।
यहां बता दें कि याचिकाकर्ता ने इसे गलत बताया और उच्चस्तरीय जांच की मांग करते हुए परीक्षा के परिणामों पर रोक लगाने की मांग की है। इसके अलावा पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन करने की मांग की गई है। अब हाईकोर्ट की एकलपीठ ने सरकार को इस मामले में चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।