नैनीताल। उत्तराखंड में नजूल भूमि पर अवैध तरीके से कब्जा कर चुके लोगों को हाईकोर्ट ने बड़ा झटका दिया है। हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार की 2009 की नजूल नीति के तहत नजूल भूमि पर अवैध कब्जेदारों के पक्ष में फ्रीहोल्ड करने के प्रावधान को असंवैधानिक व गैरकानूनी मानते हुए रद्द कर दिया है। कोर्ट ने इस गैरकानूनी काम के लिए सरकार पर 5 लाख का जुर्माना भी लगा दिया है। जुर्माने की रकम राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के खाते में जमा होगी। कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार नजूल भूमि को अतिक्रमणकारियों से पूरी तरह से मुक्त कराकर उसे अपने कब्जे में लेने को कहा है। हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद अब हजारों परिवारों के सामने उनका आशियाना छिनने का डर पैदा हो गया है।
गौरतलब है कि रुद्रपुर के रहने वाले रामबाबू और हाईकोर्ट के वकील रवि जोशी ने एक जनहित याचिका दायर कर 2009 में जारी नजूल नीति को चुनौती दी थी। इस याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकार इस जमीन पर कब्जा कर रहे लोगों से मामूली रकम लेकर उन्हें फ्रीहोल्ड दे रही है जो कि असंवैधानिक, मनमाना और नियम विरुद्ध है। यहां बता दें कि हाईकोर्ट ने भी इस नजूल नीति का स्वतः संज्ञान लेते हुए मामले को ‘‘इन रिफरेंस नजूल पॉलिसी ऑफ दी स्टेट फॉर डिस्पोजिंग एंड मैनेजमेंट ऑफ नजूल लैंड’’ नाम से जनहित याचिका के रूप में दर्ज किया था।
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आपको बता दें कि रामबाबू और रवि जोशी ने अपनी याचिका में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने निर्णय में नजूल भूमि के उपयोग की व्यवस्था दी थी। इसके बावजूद प्रदेश सरकार इसका सार्वजनिक उपयोग करने के बजाय अवैध तरीके से कब्जा करने वालों को फ्रीहोल्ड देकर अपना हित साधने में लगी है। गरीब जनता जिसको वास्तविक रूप से इस भूमि की जरूरत है, उसकी इसमें अनदेखी की जा रही है।
गौर करने वाली बात है कि वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के बाद नजूल भूमि को फ्रीहोल्ड करने के प्रावधान को रद्द करते हुए सरकार पर 5 लाख जुर्माना लगा दिया। कोर्ट ने कहा कि सरकार की नजूल नीति रूल ऑफ लॉ के खिलाफ है। नजूल भूमि का उपयोग सार्वजनिक हित में किया जाए। कोर्ट के इस फैसले से काशीपुर, रामनगर समेत अन्य निकायों में फ्रीहोल्ड करा चुके हजारों कब्जेदारों के बेघर होने का खतरा पैदा हो गया है।