देहरादून। गंगा को साफ और प्रदूषण मुक्त करने के लिए केन्द्र सरकार की तरफ से नमामि गंगे प्रोजेक्ट चलाई जा रही है लेकिन उत्तराखंड में इसकी कार्ययोजना धरातल पर उतरती नहीं दिखाई दे रही है। गोमुख से लेकर हरिद्वार तक करीब 253 किलोमीटर के इस फासले में चिह्नित 135 नालों में से अभी 65 टैप होने बाकी हैं, जबकि इस क्षेत्र के शहरों, कस्बों से रोजाना निकलने वाले 146 एमएलडी (मिलियन लीटर डेली) सीवरेज में से 65 एमएलडी का निस्तारण चुनौती बना है। बता दें कि प्रशासन जिन नालों को टैप करने की बात कर रही है उनसे अभी भी गंदगी गंगा में गिर रही है।
गौरतलब है कि उत्तरकाशी, देवप्रयाग और श्रीनगर जैसे इलाकों में अभी भी टैप किए गए नाले गंगा में गिर रहे हैं तो जगह-जगह ऐसे तमाम नाले हैं, जिन पर अफसरों की तरफ से कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। बता दें कि गंगा की स्वच्छता को लेकर 1985 से शुरू हुए गंगा एक्शन प्लान के तहत उत्तराखंड में भी कसरत हुई थी। उस वक्त गोमुख से हरिद्वार तक 70 नालों को टैप करने की बात कही गई थी और यह काम पूरा भी कर लिया गया था।
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आपको बता दें कि 2015 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल तक मामला पहुंचा तो एनजीटी ने सभी नालों को गंगा में जाने से रोकने को कदम उठाने के निर्देश दिए। इसके बाद केन्द्र की भाजपा सरकार ने 2016 में नमामि गंगे प्रोजेक्ट शुरू की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत उत्तराखंड में गंगा से लगे शहरों, कस्बों में नाले टैप करने और सीवरेज निस्तारण को सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) पर फोकस किया गया। परियोजना के निर्माण मंडल (गंगा) ने गोमुख से हरिद्वार तक पूर्व के 70 नालों समेत कुल 135 नाले चिह्नित किए गए थे इनमें से अभी 65 में से 58 पर कार्य शुरू हो पाया है। राज्यों में एसटीपी लगाने का काम कई जगहों पर पूरा कर लिया गया है और कई जगहों पर काम चल रहा है।
गंगा की सफाई को लेकर शुरू हुए प्रोजेक्ट नमामि गंगे की हकीकत यह है कि उत्तरकाशी, देवप्रयाग में सभी चिह्नित जिन नालों को टैप कर दिया गया है उनमें से 4 नालों में से तांबाखाणी, वाल्मीकि बस्ती व तिलोथ के नजदीक के नालों की गंदगी सीधे गंगा में गिर रही है। कुछ ऐसा ही हाल देवप्रयाग का भी है यहां टैप किए गए नालों से ओवरफ्लो होकर गंदगी गंगा में गिर रही है।