नैनीताल। सरोवर नगरी के नाम से मशहूर नैनीताल में दिनों-दिन हरियाली खत्म होती जा रही है। इसके लिए बढ़ती आबादी और तेजी से होते निर्माण कार्य जिम्मेदार हैं। वैज्ञानिकों ने धरती से नैनीताल में उगने वाली झाड़ियों के खत्म होने पर चिन्ता जताई है। वे इसे पर्यावरण के लिए खतरा बता रहे हैं। उनका कहना है कि इनका संरक्षण न होने पर लोगों को गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने को कहा है।
झाड़ियों की तादाद में भारी कमी
गौरतलब है कि प्रदेश में तेजी से बढ़ती आबादी और अन्धाधुंध निर्माण के कारण जंगलों का रकबा सिकुड़ता जा रहा है। रिहाइश बनाने के लिए जंगलों को काटा जा रहा है। इस वजह से नैनीताल में उगने वाले किलमोड़ा, घिंघारू, कोरियारा, हिसालू, बिच्छू घास, बरबेरी, सेपीएम, पालंग पत्ती, निगाल और हल्दू घास जैसे कई ऐसी प्रजातियां हैं जो आज विलुप्त होने की कगार पर हैं। आपको बता दें कि ये झाड़ियां करीब 90 फीसदी तक कम हो गई हैं। लगातार हो रहे निर्माण कार्य से कुदरती रूप से पैदा होने वाले बांज, देवदार, सुरई, बुरांश, तिलौंज एवं पुतली समेत कई प्रजातियों के पौधों की संख्या न के बराबर पहुंच चुकी है।
कटाई के साथ संरक्षण जरूरी
कुमाऊं विश्वविद्यालय के डीएसबी परिसर के वनस्पति वैज्ञानिक प्रो. ललित तिवारी के अनुसार भवनों के निर्माण के साथ जंगलों की कटाई ठीक है लेकिन इसका संरक्षण भी जरूरी है। पर्यावरण विशेषज्ञ का मानना है कि अगर इनका संरक्षण नहीं किया गया तो ये पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदायक साबित हो सकती है। राज्य में होने वाली बारिश के लिए ये झाड़ियां काफी हद तक जिम्मेदार हैं।