देहरादून। नए साल में उत्तराखंड के कई योजनाओं के अटकने की संभावना है और इसके लिए केंद्र का चक्कर लगाना पड़ सकता है। वन भूमि हस्तांतरण को लेकर विशेष छूट खत्म होने से हर साल करीब 200 योजनाओं के अटकने के आसार हंै। अगर राज्य स्तर पर एक हेक्टेयर तक वन भूमि हस्तांतरण के प्रस्तावों को ग्रीन सिग्नल देने का अधिकार नहीं मिलता है तो पुल, स्कूल, अस्पताल जैसी छोटी योजनाओं के लिए वन भूमि प्राप्त करने के लिए केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के चक्कर लगना तय है।
गौरतलब है कि आज से करीब 9 साल पहले राज्य सरकार को एक हेक्टेयर तक की वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से वन भूमि हंस्तातरित करने का अधिकार दिया गया था। इसके बाद 2013 में आई भीषण आपदा के बाद केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार को 5 हेक्टेयर तक भूमि हस्तांतरित करने का अधिकार दे दिया। 5 हेक्टेयर की अनुमति 2016 में खत्म हो चुकी है।
यहां बता दें कि वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हर साल 1 हेक्टेयर तक वन भूमि हस्तांतरण वाले करीब 175 प्रस्ताव आते हैं जिनमें ज्यादातर पुल, सरकारी स्कूल, अस्पताल, ट्रांसमिशन लाइन, पुलिस चैकी, पेयजल योजना, छोटी सड़कों के निर्माण से जुड़े होते हैं। राज्य सरकार के पास भूमि हस्तांतरण का अधिकार होने की वजह से इन प्रस्तावों के निस्तारण में कम समय लगता था लेकिन अब इसकी मंजूरी के लिए केंद्र की राह देखनी पड़ेगी। बता दें कि राज्य को 1 हेक्टेयर तक वनभूमि हस्तांतरण करने का अधिकार था वह 31 दिसंबर को खत्म हो गया है।
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इन विकास कार्यों के लिए बढ़ेगी परेशानी
- काशीपुर-बुआखाल एनएच 121 का चौड़ीकरण, पुल निर्माण
- लालढांग-कालागढ़-कोटद्वार कंडी मार्ग
- क्यारी-पवलगढ़ मोटर मार्ग
- भंडारपानी-सीतावनी-पवलगढ़ मोटर मार्ग
- पाटकोट-रामपुर-कोटाबाग मोटर मार्ग
- मालधनचैड़ से पतरामपुर मोटर मार्ग
- ढेला-पटरानी-तुमड़िया डाम
- ढेला-फांटो-पतरामपुर मोटर मार्ग
- पूछड़ी से भगवाबंगर, कालूसिद्ध मंदिर मार्ग
- पाटकोट-बमनगांव से सानणा मोटर मार्ग पर
- अमोठा से रियाड़ मोटर मार्ग
- कोसी नदी पर भरतपुरी, कौशल्यापुरी का तटबंध
- वनग्रामों में स्कूल भवन, बिजली, पेयजल, शौचालय आदि योजनाएं