देहरादून। राज्य में सरकारी नीतियों को लागू करने को लेकर विभागों के बीच आपसी तालमेल में कमी साफ दिख रही है। इस सत्र से लागू होने वाले तबादला एक्ट पर भी ऐसा ही नजर आ रहा है। यहां हर विभाग ने अपने-अपने सुगम-दुर्गम स्थान निश्चित कर लिए हैं। जिन स्थानों के एक विभाग ने सुगम में दिखाया है उसी स्थान को दूसरे विभाग ने दुर्गम में दिखा दिया है। ऐसे में इस मनमाने सुगम-दुर्गम निर्धारण से विवाद की नौबत पैदा हो गई है। मामला सामने आने के बाद शहरी विकास मंत्री और सरकारी प्रवक्ता मदन कौशिक सभी विभागों के आकार और क्षेत्र का हवाला दे रहे हैं।
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गौरतलब है कि राज्य कर विभाग ने विकासनगर, मसूरी, ऋषिकेश, कुल्हाल, कोटद्वार, श्रीनगर, रामनगर, नैनीताल, टनकपुर, अल्मोड़ा को दुर्गम माना है जबकि लोक निर्माण विभाग ने अल्मोड़ा और श्रीनगर को सुगम माना है। लोक निर्माण विभाग ने मंडल मुख्यालय पौड़ी को दुर्गम और श्रीनगर को सुगम माना है।
वहीं स्वास्थ्य विभाग ने अल्मोड़ा और कोटद्वार को सुगम, मसूरी और श्रीनगर को दुर्गम में रखा है। हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जिले को स्वास्थ्य, उच्च शिक्षा और विद्यालयी शिक्षा विभाग ने सुगम माना जबकि दून व नैनीताल के केवल मैदानी क्षेत्रों को ही सुगम की श्रेणी में रखा है। यहां बता दें कि विभागों द्वारा सुगम-दुर्गम के निर्धारण पर लोक निर्माण विभाग के डिप्लोमा इंजीनियर संघ और मिनिस्टीरियल संघ ने ने आपत्ति जताई है। इनका कहना है कि पौड़ी जब दुर्गम इलाके में शामिल है तो श्रीनगर सुगम कैसे हो सकता है?
यहां बता दें कि अब इस विवाद पर सरकारी प्रवक्ता मदन कौशिक का कहना है कि हर विभाग के क्षेत्र और आकार अलग-अलग हैं इसके बावजूद अगर कोई विरोध है तो उसका निदान किया जाएगा।