देहरादून। राज्य के सरकारी स्कूलों में बच्चों को दी जाने वाली मुफ्त शिक्षा के नाम पर एक बड़ा गड़बड़झाला सामने आया है। अब तक पहली से 8वीं तक की कक्षा के छात्रों को मुफ्त में किताबें दी जाती थी लेकिन इस बार उन्हें एनसीईआरटी की किताबों के लिए अपनी जेबें ढीली करनी पड़ेगी क्योंकि सरकार द्वारा सीधे खाते में आने वाले किताबों के पैसे उनकी कीमत से कम हैं। शिक्षा विभाग, सर्व शिक्षा अभियान के तहत मिलने वाले बजट को ही मानक बताकर अपना पल्ला झाड़ रहा है। ऐसे में छात्रों की परेशानियां बढ़ गई हैं।
गौरतलब है कि राज्य में नए सत्र से सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें अनिवार्य कर दी गई हैं। अब तक प्रदेश के सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से लेकर 8वीं तक के बच्चों को किताबें मुफ्त में दी जाती है लेकिन इस बार इन छात्रों को किताबों की कीमतें अपनी जेब से भरनी होगी। बता दें कि सरकार ने किताबों की कीमत सीधे छात्रों के खाते में डालने की बात कही है लेकिन जो कीमत उनके खाते में डाली जा रही है बाजार में उन किताबों की कीमत उससे कहीं ज्यादा है।
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आपको बता दें कि पहली से 5वीं तक की कक्षा के छात्रों के खाते में 150 रुपये दिए जा रहे हैं, जबकि 6 से 8 तक के बच्चों को 250 रुपये देने की तैयारी है। मगर बाजार में किताबों की कीमत इससे ज्यादा होने से प्राइमरी स्तर पर बच्चों को 100 से 150 रुपये तक जेब से भरने पड़ रहे हैं तो जूनियर स्तर के लिए बजट दोगुना तक बढ़ गया है। ऐसे में छात्रों और अभिभावकों की परेशानियां बढ़ गई हैं जबकि शिक्षा विभाग सर्व शिक्षा अभियान के तहत दिए जाने वाले बजट के मानकों का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़ रहा है।
उत्तराखंड में छपी किताबें महंगी
उत्तराखंड में प्रकाशित एनसीईआरटी की किताबें महंगी हैं। केंद्र सरकार ने एनसीईआरटी के तहत दिल्ली में प्रकाशित किताबों के आधार पर मूल्य तय किया है जबकि उत्तराखंड में कक्षा 1 से 8 तक की किताबें 4 से 8 रुपये तक महंगी हैं इसके बावजूद सरकार ने छात्रों को दी जाने वाली राशि में कोई इजाफा नहीं किया है। अब अपर शिक्षा निदेशक द्वारा जून में समग्र शिक्षा अभियान के तहत बच्चों को किताबों की कीमत प्राथमिक के लिए 250 और जूनियर के लिए 400 रुपये कर दिए जाने की बात कह रहे हैं।