देहरादून। राज्य में बेकार समझी जाने वाली चीड़ (पिरुल) की पत्ती अब लोगों की आय का जरिया बनेगी। राज्य में चीड़ पत्ती प्रसंस्करण की पहली इकाई की स्थापना की गई है। इसके लिए पिरुल से कई तरह के उत्पाद फाइल, लिफाफे, कैरी बैग, फोल्डर और डिस्प्ले बोर्ड जैसी सामग्री बनाई जाएगी। बता दें कि पिरुल को काफी ज्वलनशील माना जाता है और इसे जंगलों में आग लगने का मुख्य कारण भी माना जाता है। इससे पहले पिरुल से कोयला बनाने की योजना बनाई गई थी लेकिन वह संभव नहीं हो पाया।
गौरतलब है कि गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान के ग्रामीण परिसर में चीड़ की पत्ती के प्रसंस्करण की इकाई लगाई गई है। उम्मीद की जा रही है कि इस इकाई के लगने से स्थानीय लोगों को रोजगार मिलने के साथ, जंगलों में लगने वाली आग और पलायन पर भी रोक लगाई जा सकेगी।
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आपको बता दें कि पिरुल की लुगदी को काफी ज्वलनशील माना जाता है और जंगलों में लगने वाली आग के फैलने की मुख्य वजह भी इसे ही माना जाता है। जिससे वन संपदा के साथ ही जीव-जंतुओं को हर साल काफी नुकसान होता है। बता दें कि वन विभाग ने एक दशक पहले पिरुल से कोयला बनाने की योजना बनाई थी लेकिन यह सफल नहीं हो सकी लेकिन अब पर्यावरण संस्थान के राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत चल रहे मध्य हिमालयी क्षेत्रों में एकीकृत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन ने सतत आजीविका सुधार कार्यक्रम के तहत चीड़ पत्ती प्रसंस्करण इकाई स्थापित की है। इकाई के तहत 65 लाख रुपये की लागत के कटर, ब्वॉयलर आदि उपकरण लगाए गए हैं।
पिरुल से ऐसे बनेंगे फोल्डर
संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक और परियोजना के अन्वेषक डॉ. डीएस रावत ने बताया कि पिरुल की सूखी पत्तियों को कटर से महीन काटा जाता है फिर हैमर से कूटा जाता है। इसके बाद ब्वॉयलर में पिरूल की लुगदी तैयार की जाती है। तत्पश्चात बीटर मशीन में मिक्सिंग कर साढ़े तीन फुट चौड़ा और ढाई फुट मोटा गत्ता तैयार होता है। गत्ते से फाइल, लिफाफे, कैरी बैग, डायरी, फोल्डर बनाए जाते हैं।