देहरादून। उत्तराखंड में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत संविदा पर नौकरी करने वाली महिलाओं को पदोन्नती देने से पहले गर्भ जांच करानी होगी। अगर वे गर्भवती पाई जाती हैं तो उनकी नौकरी जा भी सकती है। पिथौरागढ़ की सीएमओ द्वारा लिए गए इस फैसले की अब सभी ओर से काफी आलोचना हो रही है। इससे पहले कांग्रेस पार्टी ने भी सरकार की नीतियों की तीखी आलोचना करते हुए राज्यपाल से उसे बर्खास्त करने की मांग की है। आपको बता दें कि संविदा पर नौकरी करने वाली महिलाओं को पदोन्नती देने के नए नियम को महिलाओं का अपमान बताया है।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत कार्यरत महिला कर्मचारियों का संविदा विस्तार से पहले प्रेग्नेंसी टेस्ट होगा। यदि टेस्ट में वे गर्भवती पाई गईं तो उनकी नौकरी खतरे में पड़ सकती है। पिथौरागढ़ की सीएमओ ने महिला कर्मचारियों के सेवा विस्तार के लिए यह शर्त जोड़ी है। एनएचएम के तहत राज्य में चार हजार के करीब कर्मचारी कार्यरत हैं। इनमें से 15सौ महिलाएं हैं। एनएचएम कर्मियों को हर साल सेवा के आधार पर संविदा विस्तार दिया जाता है।
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स्वास्थ्य विभाग के अफसर हर वर्ष संविदा विस्तार से पूर्व महिलाओं के लिए प्रेग्नेंसी टेस्ट अनिवार्य करते हैं। दो साल पहले इस पर विवाद के बाद तत्कालीन प्रमुख सचिव स्वास्थ्य ओमप्रकाश, प्रमुख सचिव कार्मिक राधा रतूड़ी और महिला आयोग ने कहा था कि नई नियुक्ति और संविदा विस्तार के मामले में प्रेग्नेंसी टेस्ट का सामना नहीं करना होगा। इसके बावजूद एनएचएम ने इस संदर्भ में कोई दिशा निर्देश नहीं दिए गए। जिससे सीएमओ की ओर से संविदा विस्तार से पहले प्रेग्नेंसी टेस्ट के निर्देश दिए गए हैं।
एनएचएम में कार्यरत महिला कर्मचारियों को 786 दिन की चाइल्ड केयर लीव नहीं मिल रही है। जबकि हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को इस बारे में स्पष्ट आदेश दिए गए हैं। सीएमओ पिथौरागढ़ डॉ. ऊषा गुंज्याल का कहना है कि एनएचएम के नोडल अफसर डॉ. विनोद टोलिया से इस संदर्भ में बात हुई थी। उन्होंने बताया कि संविदा में प्रेग्नेंसी टेस्ट की इतनी जरूरत नहीं होती जितनी शुरू में होती है। गलती से यह आदेश हो गया है। अभी मैं अवकाश पर हूं, जल्दी ही इस आदेश को रद्द करने के लिए प्रभारी सीएमओ को बताऊंगी।