देहरादून। उत्तराखंड में फर्जी शिक्षकों की भर्ती मामले में शिक्षा विभाग की भूमिका संदेह के दायरे में आ रही है। हर्रावाला इलाके में जहां फर्जी शिक्षकों को अनुदान और नियुक्ति देने वाले तीन अधिकारियों के नाम मुकदमे से हटा दिए गए। वहीं एसआईटी की संस्तुति के बाद भी हरिद्वार में 8 फर्जी शिक्षकों पर मुकदमा तक दर्ज नहीं हुआ। इससे साफ है कि फर्जीवाड़े के इस खेल में विभाग की भूमिका भी कम नहीं है।
दस्तावेज का न मिलना
गौरतलब है कि उत्तराखंड में फर्जी डिग्री के आधार पर बड़ी संख्या में शिक्षकों की नियुक्ति की गई थी। अब शिक्षा विभाग ही उन्हें बचाने में लगा हुआ है इसकी वजह है तय प्रक्रिया के तहत शिक्षकों की भर्ती करने के बाद शिक्षा विभाग के पास शिक्षकों के दस्तावेज का न होना है। एसआईटी के कई बार नोटिस भेजने और शासन के हस्तक्षेप के बाद ही शिक्षकों के प्रमाणपत्र मिल पाए। बता दें कि एसआईटी द्वारा प्रमाणपत्रों की जांच में बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ था। इसके बाद एसआईटी ने इन शिक्षकों के खिलाफ मुकदमे की संस्तुति की थी। पहली कार्रवाई हर्रावाला सावित्री शिक्षा निकेतन के चार शिक्षकों के खिलाफ की गई।
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संस्तुति के बाद भी मुकदमा नहीं हुआ दर्ज
आपको बता दें कि इन शिक्षकों के खिलाफ भी एसआईटी की रिपोर्ट को काफी समय तक दबाए रखने के बाद ही मुकदमा दर्ज किया गया जबकि इसमें स्कूल को अनुदान जारी करने और शिक्षकों को नियुक्ति देने वाले अधिकारियों के नाम हटा दिए। इस स्कूल के केस में एसआईटी ने तीन अधिकारियों को दोषी मानते हुए इनके खिलाफ भी मुकदमे की संस्तुति की गई थी। हरिद्वार में राजकीय प्राथमिक विद्यालयों के आठ शिक्षकों के मामले में भी ऐसा ही किया जा रहा है। एसआईटी ने इनके खिलाफ मुकदमे दर्ज करने की संस्तुति शिक्षा निदेशालय को भेज दी गई है लेकिन यह रिपोर्ट अब तक हरिद्वार नहीं पहुंची है। ऐसे में शिक्षा विभाग की भूमिका संदेह के दायरे में आना लाजमी है।