Friday, April 19, 2024

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राज्य चुनाव आयोग ने जारी किए सोशल मीडिया के इस्तेमाल के दिशा-निर्देश, जानिए क्या हैं चुनौतियां 

अंग्वाल न्यूज डेस्क
राज्य चुनाव आयोग ने जारी किए सोशल मीडिया के इस्तेमाल के दिशा-निर्देश, जानिए क्या हैं चुनौतियां 

देहरादून।चुनाव से पहले सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल पर निगरानी रखना चुनाव आयोग के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। सोशल मीडिया पर आचार संहिता लागू होने के पहले सप्ताह में ही भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की फर्जी सूचियां सोशल मीडिया पर जारी कर दी गईं। मामला इतना तूल पकड़ा कि मुकदमा तक कराने की नौबत आ गई। इतना ही नहीं, तमाम आरोप प्रत्यारोप और फर्जी अकाउंट्स इस दौरान सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गए हैं। ऐसे में चुनाव आयोग के सामने इन पर निगरानी रखना एक चुनौती बन गई है।

सोशल मीडिया में फर्जी लिस्ट हुई जारी 

गौरतलब है कि जहां एक तरफ सोशल मीडिया ने लोगों की जिन्दगी को काफी आसान बना दिया है वहीं दूसरी तरफ इसने लोगों के लिए कई तरह की परेशानियां भी खड़ी दी है। ऐसी ही कुछ परेशानियों का सामना उत्तराखंड मंे चुनाव अधिकारियों को भी करना पड़ रहा है। प्रदेश में आचार संहिता लागू होने से पहले ही भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों की सूची सोशल मीडिया पर आ गईं। इसके लिए बाद में पार्टी को सफाई देनी पड़ी। इतना ही नहीं, इस मामले में मुकदमा दर्ज भी कराया गया। ऐसा ही कुछ कांग्रेस पार्टी के साथ भी हुआ, उनके आधिकारिक पैड पर प्रत्याशियों की सूची व्हाट्सएप और फेसबुक पर आ गई। इसके लिए बाद में पार्टी की तरफ से सफाई दी गई। 

लाखों पोस्ट पर नजर रखना मुश्किल

ऐसे में यह कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया अनियंत्रित जनसंचार माध्यम के रूप में पैर पसार रहा है। इस पर कोई भी सामग्री बिना प्रमाणीकरण के प्रसारित कर दी जा रही है। अब मुख्य चुनाव अधिकारी की तरफ से इसके लिए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। उनका कहना है कि निर्वाचन आयोग पूरी मुस्तैदी से सोशल मीडिया पर नजर रख रहा है लेकिन यह नजर एक सीमा तक ही है। राधा रतूड़ी ने यह भी कहा कि कम संसाधनों के बीच सोशल मीडिया की इतनी बड़ी दुनिया में हर पोस्ट पर नजर रखना मुमकिन नहीं है। अकेले उत्तराखंड में ही करीब 25 लाख से ज्यादा लोग ऐसे हैं जो फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं। व्हाट्सएप पर इससे भी ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं। हालंकि टिवट्र यूजर्स की संख्या अभी राज्य में कुछ कम है। सोशल मीडिया के इन माध्यमों का इस्तेमाल करने वालों के भी अपने ग्रुप हैं ऐसे में सभी पर नजर रखना काफी मुश्किल है। आपको बता दें कि सोशल मीडिया चुनाव प्रचार करने का एक सशक्त माध्यम बनता जा रहा है। इस पर नजर बनाए रखने के लिए राज्य के निर्वाचन विभाग ने भारत निर्वाचन आयोग से कुछ और बिंदुओं पर भी जानकारी मांगी थी।

इन बातों पर रखा जाए ध्यान

-फेसबुक-ट्विटर पर लाइव होने के लिए अनुमति की जरूरत नहीं है लेकिन लाइव की जा रही विषयवस्तु में आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। लाइव के दौरान रिकॉर्ड होने वाले वीडियो भी बाद में बिना पूर्व प्रमाणीकरण के विज्ञापन के रूप में नहीं चलाए जा सकते।


-किसी भी पेज या अकाउंट को स्पांसर करते समय उस पर आ रहे खर्च की सूचना व भुगतान की प्रक्रिया का विवरण जिला-राज्य स्तरीय मीडिया प्रमाणीकरण एवं निगरानी कमेटी को नियमित रूप से देना होगा।

-जिला निर्वाचन अधिकारियों के स्तर से राजनैतिक दलों-प्रत्याशियों, राजनेताओं को सोशल मीडिया संबंधी प्रावधानों से अवगत कराया जाए।

-यदि किसी पोस्ट, वीडियो, एनिमेशन, ग्राफिक प्लेट को सोशल मीडिया पर विज्ञापन के रूप में जारी किया जाना है, तो मीडिया प्रमाणीकरण एवं निगरानी कमेटी से इसका पूर्व प्रमाणीकरण जरूरी होगा। अन्यथा इसका आचार संहिता के प्रावधानों के अंतर्गत उनका अनुश्रवण किया जाता रहेगा। यदि कोई पोस्ट आचार संहिता का उल्लंघन करती पाई गई तो उस पर नियमानुसार कार्रवाई होगी ।

-वेबसाइट पर किसी भी प्रकार के विज्ञापन (बैनर, लिखित विज्ञापन, वीडियो, फोटो आदि) जारी किए जाने की सूचना और उनका मीडिया प्रमाणीकरण एवं निगरानी से प्रमाणीकरण जरूरी होगा।

-सभी प्रत्याशियों और राजनैतिक दलों को जिला स्तरीय-राज्य स्तरीय मीडिया प्रमाणीकरण एवं निगरानी कमेटियों को अपने सभी सोशल मीडिया अकाउंट्स की संपूर्ण सूचना देनी होगी।

-प्रत्याशियों-दलों को यह भी बताना होगा की इन अकाउंट्स को चलाने में क्या खर्च आ रहा है। इसमें इंटरनेट, क्रिएटिव टीम व कार्मिकों को किया जाने वाला भुगतान भी शामिल होगा।

-जिन सोशल मीडिया गतिविधियों में कमेटी से पूर्व प्रमाणीकरण की बाध्यता नहीं है, उनकी निगरानी भी कमेटी करेगी। यदि इनमें आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करती कोई सामग्री मिली तो उस पर भी नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। 

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